________________
269
झ-प्रत्याहार सूत्र VIII
झल्... - VII. 1.72 आचार्य पाणिनि द्वारा अपने अष्टम प्रत्याहार सत्र में देखें-झलचः VII. I. 72 पठित प्रथम वर्ण।
झल: -VIII. ii. 26 पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला - झल् से उत्तर (सकार का लोप होता है,झल् परे रहते)। का बींसवा वर्ण।
झलचः -VII. 1.72 , ...झ... -III. iv.78
झलन्त तथा अजन्त (नपुंसकलिङ्ग वाले) अङ्ग को देखें-तिप्सिस्झि० III. iv. 78
(सर्वनामस्थान परे रहते नुम् आगम होता है)। झ: - VII.i.3
झलाम् - VIII. ii. 39 (प्रत्यय के अवयव) झ् के स्थान में (अन्त् आदेश होता (पट के अन्त में वर्तमान) शलों को (जश आदेश होता
झलाम् - VIII. iv. 52 झलों के स्थान में (झश् परे रहते जश् आदेश होता
झयः -V. iv. III
(अव्ययीभाव समास में वर्तमान) झयन्त प्रातिपदिकों से (समासान्त टच् प्रत्यय होता है)। झयः - VIII. II. 10
झयन्त से उत्तर (मतुप को वकारादेश हो जाता है)। झयः - VIII. iv. 61 ... . झय प्रत्याहार से उत्तर (हकार को विकल्प से पूर्वसवर्ण
आदेश होता है)। ....झयोः - III. iv. 81
देखें - तझयोः III. iv. 81 'झर -VIII. iv.64
(हल् से उत्तर) झर् का विकल्प से लोप होता है,सवर्ण झर परे रहते)। झरि - VIII: iv.64
(हल् से उत्तर झर् का विकल्प से लोप होता है, सवर्ण) झर् परे रहते। ...झझरात् -IV. iv.56
देखें- मडकझाझरात् IV. iv.56 झल्-I. 1.9
(इगन्त धातु से परे) झलादि (सन् कित्वत् होता है)। झल्-VI.1. 177 . (दिव् शब्द से परे) झलादि विभक्ति (उदात्त नहीं होती)।
झलि - VI.i. 57
(सज तथा दशिर धातु को कित् भिन्न) झलादि प्रत्यय परे हो तो (अम् आगम होता है)। झलि - VI. i. 174
(षट्सज्ज्ञक, त्रि तथा चतुर् शब्द से उत्पन्न) झलादि (विभक्त्यन्त) शब्द में (उपोत्तम को उदात्त होता है)। झलि-VI. iv.37 (अनुदात्तोपदेश और जो अनुनासिकान्त उनके तथा वन एवं तनोति आदि अङ्गों के अनुनासिक का लोप होता है) झलादि (कित् ङित्) प्रत्ययों के परे रहते। झलि - VII. 1. 60
(टुमस्जो शुद्धौ' तथा 'णश् अदर्शने' धातुओं को) झलादि प्रत्यय परे रहते (नुम् आगम होता है)। झलि - VII. ii. 103
(अकारान्त अङ्ग को बहुवचन) झलादि (सुप) परे रहते (एकारादेश होता है)। झलि - VIII. 1. 26 (झल से उत्तर सकार का लोप होता है) झल् परे रहते।