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जानपदकुण्डगोणस्थल.
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जिह्वामूलाडले
जानपदकुण्डगोणस्थलभाजनागकालनीलकुशकामुककब- शेष विवक्षित होने पर षष्ठी विभक्ति होती है)। रात् - IV.i. 42
...जाहचौ-v.ii. 24 जानपद आदि ११ प्रातिपदिकों से (यथासंख्य करके देखें-कणब्जाहचौ V.ii. 24 वृत्ति अमत्रादि ११ अर्थों में स्त्रीलिङ्ग में डीष् प्रत्यय ...जि... -II. ii. 46 होता है)।
देखें-भृतवृ० III. ii. 46 जानपदाख्यायाम् -V.iv. 104
...जि... -III. ii. 61 (ब्रह्मशब्दान्त तत्पुरुष समास से समासान्त टच् प्रत्यय
देखें-सत्सू० III. H. 61 होता है,यदि समास के द्वारा ब्रह्मन शब्द) जनपद में होने ...जि... -III. II. 139 वाले की आख्या वाला हो तो।
देखें-ग्लाजिस्थः II. I. 139 जानुनः - V. iv. 129
जि... - III. ii. 157 (बहुव्रीहि समास में प्र तथा सम् से उत्तर) जो जानु शब्द,
देखें-जिदृक्षिा III. ii. 157 उसके स्थान में (समासान्त अ आदेश होता है)।
...जि... --III. 1. 163 जान्त... -VI. iv. 32
देखें - इण्नशo III. ii. 163
....जि.. -VII. iv. 80 देखें-जान्तनशाम् VI. iv. 32 जान्तनशाम् -VI. iv. 32
देखें-पुयजि० VII. iv. 80
... जिय... - VII. iii. 78 जकारान्त अङ्ग के तथा नश् के (नकार का लोप
देखें-पिबजिन० VII. III. 78 विकल्प करके नहीं होता)।
जिघ्रते: -VII. iv.6 ...जाबाल... - VI. ii: 38
'घ्रा गन्धोपादाने' अङ्ग की (उपधा को चङ्परक णि देखें-बीहापराहण VI. ii. 38
परे रहते विकल्प से इकारादेश होता है)। जाया.. -III. 1. 52 देखें-जायापत्योः III. ii. 52
जितम् - IV. iv.2 जायापत्योः -III. ii. 52
(तृतीयासमर्थ प्रातिपदिक से खेलता है', 'खोदता है',
'जीतता है),तथा 'जीता हुआ- अर्थ में (ठक् प्रत्यय होता (लक्षणवान् कर्ता अभिधेय होने पर) जाया और पति (कम) के उपपद रहते (हन धात से टक प्रत्यय होता है)।
...जित्या: -III: I. 117 जायाया-v.iv. 134
देखें - विपूयविनीयजित्याः III. 1. 117 जाया-शब्दान्त (बहतीहि) को (समासान्त निङ आदेश
जिदृक्षिवित्रीण्वमाव्यथाध्यमपरिभूप्रसूभ्यः -
Mom होता है)।
III. ii. 157 जालम् - III. iii. 124
जि, दङ, क्षि, विपूर्वक श्रिज. इण, वम, नपूर्वक व्यथ जाल अभिधेय हो तो (आङ् पूर्वक नी धातु से करण अभिपूर्वक अम,परिपूर्वक भू, प्रपूर्वक सू-इन धातुओं कारक तथा संज्ञा में आनाय शब्द घञ् प्रत्ययान्त किया से भी (तच्छीलादि कर्ता हो तो वर्तमानकाल में इनि प्रत्यय जाता है)।
होता है)। जासि.. -II. iii. 56
जिह्वामूल... - IV. iii. 62 देखें-जासिनिग्रहण II. ill. 56
देखें-जिह्वामूलागुले: IV. iii. 62 जासिनिग्रहणनाटक्राथपिषाम् -II. iii. 56
जिह्वामूलाडले: - IV. III. 62 (हिंसा क्रिया वाले) चौरादिक जसु ताडने, नि प्रपूर्वक (सप्तमीसमर्थ) जिह्वामूल तथा अगुलि प्रातिपदिकों से • हन, ण्यन्त नट एवं क्रथ, पिष्-इन धातुओं के (कर्म में (भव अर्थ में छ प्रत्यय होता है)।