________________
239
च-VII. 1.34
च-VII. ii.98 (प्रसित, स्कभित, स्तभित, उत्तभित, चत्त, विकस्त, वि- (प्रत्यय तथा उत्तरपद परे रहते) भी (एकत्व अर्थ में शस्त, स्त, शास्त, तरुत, तरूत, वरुत, वरूत, वरूजी, वर्तमान युष्मद.अस्मद अङ्ग के मपर्यन्त अंश को क्रमशः उज्ज्वलिति, क्षरिति, क्षमिति,वमिति, अमिति-ये शब्द) त्व,म आदेश होते हैं)। भी (वेदविषय में निपातित है)।
च -VII. ii. 107 च - I. I. 40
(अदस् अङ्ग को औ' आदेश) तथा (सु का लोप होता (परस्मैपदपरक सिच परे रहते) भी (वृ तथा ऋकारान्त है)। धातुओं से उत्तर इट् को दीर्घ नहीं होता)।
च-VII. ii. 109 च-VII. II. 43
(इदम् के दकार के स्थान में) भी (यकार आदेश होता (संयोग है आदि में जिसके, ऐसे ऋकारान्त धातु से है,विभक्ति परे रहते)। उत्तर) भी (आत्मनेपदपरक लिङ् सिच् को विकल्प से इट् च-VII.1.118 आगम होता है)।
(कित तद्धित परे रहते) भी (अङ्ग के अचों में आदि च - VII. ii. 45 .
अच् को वृद्धि होती है)। (रधादि धातुओं से उत्तर) भी (वलादि आर्धधातुक को च-VII. iii. 4 विकल्प से इट् आगम होता है)।
(द्वार इत्यादि शब्दों के यकार वकार से उत्तर) भी (जित्, च -VII. I. 1
णित, कित् तद्धित परे रहते अङ्ग के अचों में आदि अच् । (पूधातु से उत्तर) भी (क्त्वा तथा निष्ठा को इट् आगम को वृद्धि नहीं होती, किन्तु यकार वकार से पूर्व को ऐच विकल्प से होता है)।
आगम तो हो जाता है)। च-VII. 1.60
च-VII. iii.5 (कृपू सामर्थे' धातु से उत्तर तास) तथा (सकारादि (केवल न्यग्रोध शब्द के अचों में आदि अच् को) भी सार्वधातुक को इट आगम नहीं होता,परस्मैपद परे रहते)। (वृद्धि नहीं होती,किन्तु उसके य से पूर्व को ऐकार आगम - च-VII. 1.73
तो होता है)। .. (यम,रमु,णम तथा आकारान्त अङ्ग को सक् आगम
च-VII. iii.7 होता है.) तथा (सिच को परस्मैपद परे रहते इट् आगम (स्वागत इत्यादि शब्दों को) भी (वृद्धि-निषेध एवं होता है)।.
ऐजागम नहीं होता)। च-VII. ii. 75
च-VII. iii. 15 (कृ इत्यादि पाँच धातुओं से उत्तर) भी (सन् को इट् (सङ्ख्यावाची शब्द से उत्तर संवत्सर शब्द के तथा आगम होता है)।
सङ्ख्यावाची शब्द के अचों में आदि अच् को) भी (जित, च -VII. 1.78 .
णित् तथा कित् तद्धित परे रहते वृद्धि होती है)। (ईड तथा जन् धातु से उत्तर ध्व) तथा (से सार्वधातुक
च - VII. iii. 19 को इट् आगम होता है)।
(हृद, भग,सिन्धु- ये अन्त में है जिन अङ्गों के, उनके च-VII. 1.87
पूर्वपद को) तथा (उत्तरपद के अचों में आदि अच को भी (द्वितीया विभक्ति के परे रहते) भी (युष्मद् तथा अस्मद
जित्, णित् तथा कित् तद्धित परे रहते वृद्धि होती है)। अङ्गको आकारादेश हो जाता है)।
च-VII. iii. 20 च-VII. ii. 88
(अनुशतिक इत्यादि अङ्गों के पूर्वपद तथा उत्तरपद (प्रथमा विभक्ति के द्विवचन के परे रहते) भी दोनों के अचों में आदि अच् को) भी (जित. णित् तथा ' (भाषाविषय में युष्मद, अस्मद् को आकारादेश होता है। कित् तद्धित परे रहते वृद्धि होती है)।