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च - VI. iv. 159
(बहु शब्द से उत्तर इष्ठन् को यिट् आगम होता है) तथा (बहु शब्द को भू आदेश भी होता है)।
च - VI. iv. 165
(गाथिन्, विदथिन्, केशिन्, गणिन्, पणिन् — इन अ को) भी (अण् परे रहते प्रकृतिभाव हो जाता है)।
च - VI. iv. 166
(संयोग आदि में है, जिस 'इन्' के, उसको) भी (अण् परे रहते प्रकृतिभाव हो जाता है)।
च - VI. iv. 168
(भाव तथा कर्म से भिन्न अर्थ में वर्तमान यकारादि तति के परे रहते) भी (अन् अन्त वाले भसञ्ज्ञक अङ्ग को प्रकृतिभाव हो जाता है) ।
च - VII. 1. 19
(नपुंसक अङ्ग से उत्तर) भी ( औ = औ तथा औट् के स्थान में शी आदेश होता है)।
च - VII. 1. 32
(युष्मद्, अस्मद् अङ्ग से उत्तर पञ्चमी विभक्ति के एकवचन के स्थान में) भी (अत् आदेश होता है)।
च - VII. 1. 43
(वेद-विषय में 'यजध्वैनम्' यह शब्द ) भी ( निपातन किया जाता है)।
च - VII. 1. 45
(त के स्थान में तप्, तनपू, तन, थन आदेश) भी (होते हैं, वेद-विषय में)।
च - VII. 1. 48
(वेद - विषय में 'इष्ट्वीनम्' यह शब्द) भी (निपातन किया जाता है।
च - VII. 1. 49
(स्नात्वी इत्यादि शब्द) भी (वेद-विषय में निपातन किये जाते हैं।
च - VIII. 1. 51
(पूङ - धातु से उत्तर) भी (त्क्वा तथा निण्ठा को इट् आगम विकल्प से होता है।
च - VII. 1. 55
(षट्-सव्ाक तथा चतुर् शब्द से उत्तर) भी (आम् को नुट् का आगम होता है)।
च - VII. 1. 64
(शप् तथा लिट्वर्जित अजादि प्रत्ययों के परे रहते 'डुलभष् प्राप्तौ' अङ्ग को) भी (नुम् आगम होता है)। च - VII. 1. 77
(द्विवचन विभक्ति परे रहते वेद-विषय में अस्थि, दधि, सक्थि अङ्गों को ईकारादेश होता है), और (वह उदात्त होता है।
च - VII. 1. 94
(ऋकारान्त अङ्ग तथा उशनस्, पुरुदंसस्, अनेहस् अ को) भी ( सम्बुद्धि-भिन्न सु परे रहते अन आदेश होता है)।
च - VII. 1. 96
(स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान क्रोष्टु शब्द को) भी (तुजन्त शब्द के समान अतिदेश हो जाता है।
च - VII. 1. 101
(धातु अङ्ग की उपधा ऋकार के स्थान में) भी (इकारादेश होता है।
च - VII. 1. 9
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(ति, तु, त्र, थ, सि, सु, सर, क, स प्रत्ययों के परे रहते) भी (इट् आगम नहीं होता) ।
इन कृत्सञ्ज्ञक
च - VII. 1. 12
(मह, गुह) तथा (उगन्त अनों को सन् प्रत्यय परे रहते इट् का आगम नहीं होता) ।
च - VII. 1. 16
(आकार-इत्सञ्ज्ञक धातुओं को) भी (निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता) ।
च - VII. 1. 25
(अभि उपसर्ग से उत्तर) भी (सन्निकट अर्थ में अर्द धातु से निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता) ।
च - VII. 1. 30
(अपचित शब्द) भी (विकल्प से निपातन किया जाता है)।
च - VII. 11. 32
(वेद-विषय में अपरिहृताः शब्द) भी (बहुवचनान्त निपातन किया जाता है)।