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च - Viv. 118
(नासिका शब्दान्त बहुवीहि से समासान्त अच् प्रत्यय होता है, सञ्ज्ञाविषय में तथा नासिका शब्द के स्थान में नस आदेश) भी (हो जाता है, यदि वह नासिका शब्द स्थूल शब्द से उत्तर न हो तो)।
च - Viv. 119
(उपसर्ग से उत्तर) भी (नासिका - शब्दान्त बहुव्रीहि से समासान्त अच् प्रत्यय होता है, तथा नासिका को नस आदेश भी हो जाता है)।
च - Viv. 128
(द्विदण्डि आदि शब्द) भी ( इच्प्रत्ययान्त गण में जैसे पठित हैं, वैसे ही साधु समझने चाहिये) ।
च - Viv. 132
(धनुषु शब्दान्त बहुव्रीहि को) भी (समासान्त अन आदेश होता है)।
च - Viv. 137
(उपमानवाची शब्दों से उत्तर) भी (गन्ध शब्द को समासान्त इकारादेश हो जाता है)।
च - Viv. 139
(कुम्भपदी आदि शब्द) भी (कृतसमासान्त- लोप साधु समझने चाहिये) ।
च - Viv. 142
(वेदविषय में) भी (दन्तशब्द को दतृ आदेश समासान्त होता है, बहुव्रीहि समास में) ।
च - Viv. 145
(अमशब्दान्त तथा शुद्ध, शुभ, वृष और वराह शब्दों से उत्तर) भी (दन्त शब्द को विकल्प से समासान्त दतृ आदेश होता है, बहुव्रीहि समास में) ।
च - Viv. 153
(बहुव्रीहि समास में नदीसञ्ज्ञक तथा ऋकारान्त शब्दों - से) भी (समासान्त कप् प्रत्यय होता है)।
230
च - Viv. 156
(बहुव्रीहि समास में ईयसुन् अन्त वाले शब्दों से) भी (कप् प्रत्यय नहीं होता) ।
च - Viv. 160
(निष्यवाणि शब्द में) भी (कप का अभाव निपातन किया जाता है)।
च - VI. 1. 12
(दाश्वान्, साहवान्) तथा (मीवान् शब्दों का छन्द तथा भाषा में सामान्य करके निपातन किया जाता है)।
च - VI. 1. 16
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(ग्रज्या व व्य व व्यच, ओवश्व, प्रच्छ, स्व् - इन धातुओं को सम्प्रसारण हो जाता है, ङित्) तथा (कित् प्रत्यय के परे रहते) ।
च - VI. 1. 25
(प्रति से उत्तर) भी (श्यै धातु को सम्प्रसारण हो जाता है, निष्ठा के परे रहते ।
च - VI. 1. 29
(लिट् तथा यङ् के परे रहते) भी (ओप्यायी धातु को पी आदेश होता है)।
च - VI. 1. 31
(सन् परे हो या च परे हो जिस णिच् के, ऐसे णि के परे रहते) भी (टुओश्वि धातु को विकल्प से सम्प्रसारण हो . जाता है)।
च - VI. 1. 32
(सन्परक, चङ्परक णि के परे रहते हेञ् धातु को सम्मसारण हो जाता है, तथा अभ्यस्त का निमित्त जो व् धातु उसको भी (सम्प्रसारण हो जाता है)।
च - VI. 1. 38
(इस वय के यकार को कित् लिट् के परे रहते विकल्प करके वकारादेश) भी (हो जाता है)।
·
च
VI.i. 40
(ल्यप् के परे रहते) भी (वेञ् धातु को सम्प्रसारण नहीं होता है।
-
च VI.i. 41
( ल्यप् परे रहते ज्या धातु को) भी (सम्प्रसारण नहीं होता है।
च - VI. 1. 42
(व्येञ् धातु को) भी ( ल्यप् परे रहते सम्प्रसारण नहीं होता है)।
च - VI. 1. 49
(मी, डुमि तथा दी धातुओं को स्यप् परे रहते) तथा (एच के विषय में भी उपदेश अवस्था में ही आत्व हो जाता है।