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________________ - 228 च-V.11.62 च-V. 1. 104 (वृद्ध शब्द के स्थान में) भी (अजादि अर्थात् इष्ठन, (दु शब्द से) भी (पात्रत्व अभिधेय होने पर यत् प्रत्यय ईयसुन प्रत्यय परे रहते ज्य आदेश होता है)। निपातन किया जाता है)। च-V. iii. 72 च-v.ii. 106 (ककारान्त अव्यय को अकच प्रत्यय के साथ साथ । (वह इवार्थ विषय है जिसका, ऐसे समास में वर्तमान दकारादेश) भी (होता है)। प्रातिपदिक से) भी (छ प्रत्यय होता है)। च-v.ili.77 च-V. iv.1 (नीति' गम्यमान हो तो) भी (उस अनुकम्पा से सम्बद्ध (सङ्ख्या आदि में है जिसके.ऐसे पाद और शत शब्द अन्तवाले प्रातिपदिकों से वीप्सा. गम्यमान हो तो वुन प्रातिपदिक से तथा तिङन्त से यथाविहित प्रत्यय होते हैं)। प्रत्यय होता है, तथा प्रत्यय के साथ साथ पाद और शत च-V. iii. 79 के अन्त का लोप) भी (हो जाता है)। (बहुत अच् वाले मनुष्यनामधेय प्रातिपदिकों से 'अनु- च- V. iv. 2 कम्पा से युक्त नीति' गम्यमान हो तो घन् और इलच् (दण्ड तथा दान गम्यमान हो तो,पाद तथा शत शब्दान्त प्रत्यय होते है), तथा विकल्प से ठच् प्रत्यय होता है)। सङ्ख्या आदि वाले प्रातिपदिकों से) भी (वुन् प्रत्यय होता च-v. iii. 80 है,तथा पाद और शत के अन्त का लोप भी हो जाता है)। (उपशब्द आदि वाले बहुच मनष्यनामधेय प्रातिपदिक च-v.ives से नीति और अनुकम्पा गम्यमान होने पर अडच, वुच्) (अरुस, मनस, चक्षुस, चेतस्, रहस् और रजस् शब्दों से तथा (घन, इलच् और ठच् प्रत्यय विकल्प से होते हैं, चि प्रत्यय भी होता है, और इन प्रकृतियों का अन्तलोप) प्राग्देशीय आचार्यों के मत में)। भी। च-V.1.2 च-V. iv. 12. (अजिन शब्द अन्तवाले मनुष्यनामधेय प्रातिपदिक से किम्, एकारान्त, तिङन्त तथा अव्ययों से उत्पन्न जो 'अनुमान गम्यमान होने पर कन् प्रत्यय होता है और उस तरप् प्रत्यय,तदन्त से वेदविषय में अमु) तथा (आमु प्रत्यय अजिनान्त शब्द के उत्तरपद का लोप) भी (हो जाता है)। होते हैं, द्रव्य का प्रकर्ष न कहना हो तो)। च-v.iii.94 च-V.iv. 19 (एक प्रातिपदिक से) भी (अपने अपने विषयों में डतरच् (एक शब्द के स्थान में सकृत् आदेश होता है), तथा तथा डतमच् प्रत्यय होते हैं, प्राचीन आचार्यों के मत में)। (सुच् प्रत्यय होता है, क्रिया-गणन' अर्थ में)। च-v.ili.97 च - V. iv. 22 (इवार्थ गम्यमान हो तो संज्ञा विषय में) भी (कन् प्रत्यय (बहत' अर्थ को कहने में प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से होता है)। 'तस्य समूह IV. iii.३६ के अधिकार में कहे हुए प्रत्ययों च-v.iii.99 के समान प्रत्यय होते है),तथा (मयट् प्रत्यय भी होता है)। (जीविकोपार्जन के लिये जो न बेचने योग्य मनुष्य की च-v.iv. 25 प्रतिकृति.उसके अभिधेय होने पर) भी (कन् प्रत्यय का (पाद और अर्घ प्रातिपदिकों से) भी (उसके लिये यह' लुप् होता है)। अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। च-V. iii. 100 च-v. iv. 31 (देवपथादि प्रातिपदिकों से) भी (इवार्थ प्रकृति अभिधेय नित्यधर्मरहित वर्ण अर्थ में वर्तमान लोहित प्रातिपदिक होने पर उत्पन्न प्रत्यय का लुप हो जाता है)। से) भी (स्वार्थ में कन् प्रत्यय होता है)। .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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