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च -III. iv. 32
(वर्षा का प्रमाण गम्यमान हो तो कर्म उपपद रहते ण्यन्त पूरी धातु से णमुल् प्रत्यय होता है),तथा (इस पूरी धातु के ऊकार का लोप विकल्प से होता है)। च-III. iv.45 · (उपमानवाची कर्म) और कर्ता भी उपपद रहते (धातुमात्र से णमुल् प्रत्यय होता है)। च-III. iv. 48
(अनुप्रयुक्त धातु के साथ समान कर्मवाली हिंसार्थक धातुओं से) भी (तृतीयान्त उपपद रहते णमुल प्रत्यय होता है)। च -III. iv. 49 .
(तृतीयान्त तथा सप्तम्यन्त उपपद हो तो उपपूर्वक पीड, रुध तथा कर्ष धातुओं से) भी (णमुल् प्रत्यय होता है)। च-III. iv.51
(आयाम = लम्बाई गम्यमान हो तो) भी (सप्तम्यन्त तथा तृतीयान्त उपपद रहते धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)।
च- III. iv. 53 . (द्वितीयान्त उपपद रहते) भी (शीघ्रता गम्यमान हो तो .. धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)।
च-III. iv.55
(चारों ओर से क्लेश को प्राप्त स्वाङ्गवाची द्वितीयान्त शब्द उपपद हो तो) भी (धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)। च-III. iv.69
(सकर्मक धातुओं से लकार कर्मकारक में होते हैं. चकार से कर्ता में भी होते हैं, और अकर्मक धातुओं से भाव में होते हैं,तथा) चकार से कर्ता में भी होते हैं।
च-III. iv.69 ___(सकर्मक धातुओं से लकार कर्मकारक में होते हैं, चकार से कर्ता में भी होते हैं, और अकर्मक धातुओं से भाव में होते हैं,तथा) चकार से कर्ता में भी होते हैं। च-III. iv.71
(क्रिया के आरम्भ के आदि क्षण में विहित जो क्त प्रत्यय, वह कर्ता में होता है, तथा) चकार से भावकर्म में भी होता है।
च-III. iv.72
(गत्यर्थक. अकर्मक,श्लिष,शीङ्, स्था, आस,वस,जन, रुह तथा जू धातुओं से विहित जो क्त प्रत्यय, वह कर्ता में होता है); चकार से भाव, कर्म में भी होता है। च -III. iv.76
(स्थित्यर्थक = अकर्मक,गत्यर्थक तथा प्रत्यवसानार्थक धातुओं से विहित जो क्त प्रत्यय,वह अधिकरण कारक में होता है,तथा) चकार से यथाप्राप्त कर्म.कर्ता में भी होता है। च-III. iv.87
(लोडादेश, जो सिप, उसके स्थान में हि आदेश होता है, और वह अपित्) भी (होता है)। च-III. iv.92
(लोट-सम्बन्धी उत्तमपुरुष को आट् का आगम हो जाता है,और वह उत्तम पुरुष पित) भी (माना जाता है)। च -III. iv.97
(परस्मैपदविषय में लेट-लकार-सम्बन्धी इकार का) भी (विकल्प से लोप हो जाता है)। च-III. iv. 100
(डित-लकार-सम्बन्धी इकार का) भी (नित्य ही लोप हो जाता है)। च-III. iv. 103
(परस्मैपद के लिङ् लकार को यासुट का आगम होता है, और वह उदात्त तथा ङित् के समान) भी (होता है)। च-III. iv. 109 (सिच से उत्तर, अभ्यस्त-संज्ञक से उत्तर तथा विद् धातु से उत्तर) भी (झि को जुस् आदेश होता है)। च-III. iv. 112 (द्विषु धातु से परे) भी (लङादेश झि के स्थान में जुस् आदेश होता है,शाकटायन आचार्य के ही मत में)।
' (लिडादेश जो तिबादि, उनकी) भी (आर्धधातुक-संज्ञा होती है)। च-V.I.6
उगिदन्तं प्रातिपदिक से) भी (स्त्रीलिङ्ग में ङीप् प्रत्यय होता है)।