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अनेकान्तखोपयात्
अगात्
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अकेकान्तखोपचात् - IV. 1. 140
अक,इक अन्त वाले तथा खकार उपधावाले जो देश- वाची वृद्धसंज्ञक)प्रातिपदिक,उनसे (शैषिक छ प्रत्यय होता
अकेनोः - II. HI. 70 (भविष्यत्कालिक और आधमर्ण्य अर्थ होने पर) अक और इन् के योग में (षष्ठी विभक्ति नहीं होती)। अकेवले - VI. 1. 96
मिश्रित अर्थ केबोधक समास में (उदक शब्द उपपद रहते पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)। । अको: - VI. 1. 128
ककारजिनमें नहीं है (तथाजोनबसमास में वर्तमान नहीं है); ऐसे (एतत् तथा तत्) शब्दों के (सका लोप हो जाता है,हल् परे रहते,संहिता के विषय में)। अको: - VII. 1. 11
ककाररहित (इदम् और अदस्) के (भिस् को ऐस् नहीं होता)। ... अको-VII.1.1
देखें- अनाको VII. I.1 अक्रान्तात् -VI. I. 198
क्र अन्त में नहीं है जिसके, ऐसे शब्द के उत्तर (सक्थ शब्द को भी विकल्प से अन्तोदात्त होता है, बहुव्रीहि समास में)। अक्ष...-II. 1. 10
देखें-अक्षशलाकासंख्या: II.1. 10 ...अक्ष.-VI. 1. 121
देखें-कूलतीर० VI. II. 121 अक्ष-III. 1.75
अक्ष धातु से उत्तर (श्नु प्रत्यय विकल्प से होता है.कर्तवाची सार्वधातुक परे रहने पर)। अक्षधूतादिभ्यः - IV. iv. 19
(तृतीयासमर्थ) अक्षतादि-गणपठित प्रातिपदिकों से (उत्पन्न किया गया अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। ...अक्षयोः - VI. III. 103 ।
देखें-पथ्यक्षयोः VI. 11. 103 अक्षशलाकासंख्या: -II.1.10
अक्ष, शलाका तथा संख्यावाची शब्द (सुबन्त परि के साथ अव्ययीभाव समास को प्राप्त होते हैं)।
....अधिभुव..-v.iv.77
देखें- अचतुर० v. iv.77 अखेषु-III. 1.70 (ग्लह शब्द में) अक्ष = जुए का पासा विषय हो,तो (ग्रह धातु से अप् प्रत्यय तथा लत्व निपातन से होता है,कर्तृभिन्न कारक तथा भाव में)। अक्षण-V.iv.76 ... (दर्शन विषय से अन्यत्र वर्तमान) अक्षिशब्दान्त प्रातिपदिक से (समासान्त अच प्रत्यय हो जाता है) .....अक्षणाम् -VII.1.75
देखें- अस्थिदधिक VII. 1.75 . ...अक्ष्णोः -v.iv. 113
देखें - सक्थ्य क्ष्णो : V. iv. 113 अगः - VIII. iv.3
गकारभिन्न (पूर्वपद में स्थित) निमित्त से उत्तर (सज्ञाविषय में नकार को णकारादेश होता है)। अगते: - VIII. 1. 57 (चन, चित्, इव तथा गोत्रादिगणपठित शब्द, तद्धित प्रत्यय एवं आमेडित-सज्ञक शब्दों के परे रहते) गतिस-: झक से भिन्न किसी पद से उत्तर (तिङन्त को अनुदात्त । नहीं होता)। अगतौ - VII. ill. 42
गतिभिन्न अर्थ में वर्तमान ('शद्ल शातने' अङ्ग को तकारादेश होता है)। . ...अगदस्य - VI. III. 69 .
देखें - सत्यागदस्य VI. lil. 69 अगस्ति ...-II. iv. 70.
देखें- अगस्तिकुण्डिनच् II. iv. 70 अगस्तिकुण्डिनच् -II. iv.70
(अगस्त्य तथा कौण्डिन्य शब्दों से गोत्र में विहित जो तत्कृत बहुवचन में प्रत्यय,उसका लुक हो जाता है, शेष बची अगस्त्य एवं कुण्डिनी प्रकृति को क्रमश:) अगस्ति
और कुण्डिनच् आदेश भी हो जाते है। ... अगस्त्य..-VI. iv. 149
देखें-सूर्यतिष्य. VI. iv. 149 अगात् - VIII. 1. 99
गकारभिन्न (इण तथा कवर्ग) से उत्तर (सकार को एकार परे रहते सज्ञाविषय में मूर्धन्य आदेश होता है)।