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अकामे
अके
अकामे -VI. 1. 11
अकृषः -VI. 1.75 (मूर्धन् तथा मस्तकवर्जित हलन्त एवं अदन्त स्वाङ्गवाची (शिल्पिवाची समास में भी अणन्त उत्तरपद रहते पूर्वपद शब्दों से उत्तर सप्तमी का) काम से भिन्न शब्द उत्तरपद को आधुदात्त होता है, यदि वह अण) कृञ् से परे न हो रहते (अलुक् होता है)।
तो। ...अकार्ययो: - V. ii. 20 .
अकृत् ... -VI. ii. 191 . देखें - अघृष्टाकार्ययो: V. ii. 20
देखें- अकृत्पदे VI. ii. 191 अकालात् -VI. ii. 32
अकृत्...-VII. iv.25 (सिद्ध, शुष्क, पक्व तथा बन्ध शब्दों के उत्तरपदं रहते) देखें - अकृत्सार्व. VII. iv. 25 अकालवाची (सप्तम्यन्त) पूर्वपद को (प्रकृतिस्वर होता ... अकृत..-III. iv. 36
देखें-समूलाकृतजीवेषु III. iv. 36 अकालात् -VI. I. 17 .
अकृत ...- VI. ii. 170 (शय.वास तथा वासिन शब्दों के उत्तरपद रहते) काल- देखें-अकृतमित० VI. ii. 170 वाचियों से भिन्न शब्दों से उत्तर (सप्तमी का विकल्प से अकृतमितप्रतिपन्नाः -VI. 1. 170 अलुक् होता है)।
(आच्छादनवाची शब्द को छोड़कर जो जातिवाची, अकाले -VI. 1. 80
कालवाची एवं सुखादि शब्द, उनसे आगे) कृत, मित (अव्ययीभाव समास में भी) अकालवाची शब्दों के उत्त- तथा प्रतिपन्न शब्द को छोड़कर (उत्तरपद क्तान्त शब्द रपद रहते (सह को स आदेश होता है)।
को अन्तोदात्त होता है, बहुव्रीहि समास में )। 'अकित:-VII. iv.83
अकृता-II. ii.7 त्यङ् अथवा यङ्लुक पर रहन पर) आकत्-कित्- . अकृदन्त (सुबन्त) के साथ (ईषत् शब्द समास को प्राप्त भिन्न (अभ्यास) को (दीर्घ हो जाता है)।
होता है, और वह तत्पुरुष समास होता है)। अकिति - VI. 1.57
अकृत्पदे - VI. ii. 191 (सृज् और दृशिर् धातु को) कित्-भिन्न (झलादि) प्रत्यय
(अति उपसर्ग से उत्तर) अकृदन्त तथा पद शब्द को परे हो तो (अम् आगम होता है)।
(अन्तोदात्त होता है)। अदिक्ते -III. ii. 145
...अकृत्रिमा... - V.I. 42 ..(असम्भावन तथा सहन न करना गम्यमान हो तो)किम्
देखें -वृत्यमत्रावपना० IV. 1. 42 के रूप वाले शब्द उपपद न हों (अथवा उपपद हों) तो
अकृत्सार्वधातुकयो: - VII. iv. 25 (भी धातु से काल-सामान्य में सब लकारों के अपवाद
. लिङ् तथा लुट् प्रत्यय होते हैं)।
कृत् तथा सार्वधातुक से भित्र (कित, ङित् यकार) परे ... अकृच्छ्रार्थेषु -III. iii. 126
रहते (अजन्त अङ्ग को दीर्घ होता है)। देखें - कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु III. iii. 126
अक्लूपि..-III. I. 110 अकृच्छ्रिणि-III. ii. 130
देखें-अक्लूपिचतेः III. I. 110 (इङ तथा धारिघात से वर्तमान काल में शत प्रत्यय होता अक्लूपिचूते: -III. I. 110 है); यदि जिसके लिये क्रिया कष्टसाध्य न हो,ऐसा कर्ता (ऋकार उपधा वाली धातुओं से भी क्यप् प्रत्यय होता वाच्य हो तो।
है),क्लपि और चूति धातु को छोड़कर। अकृच्छ्रे - VIII. 1. 13
अके - VI. ii. 73 ' (प्रिय तथा सुख शब्दों को) कष्ट न होना अर्थ द्योत्य हो जीविकार्थवाची समास में) अकप्रत्ययान्त शब्द के उत्त. तो विकल्प करके द्वित्व होता है,एवं उसको कर्मधारयवत् • रपद रहते (पूर्वपद को आधुदात्त होता है)।
कार्य होता है)।