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डसि
...प्राधेट्शाच्छासः - II. iv. 78
घ्रा, धेट्, शा, छा, सा-इन धातुओं से उत्तर (परस्मैपद परे रहते विकल्प करके सिच का लुक् हो जाता है)। घामो: - VII. iv. 31
घा तथा मा अङ्ग को (यङ् परे रहते ईकारादेश होता
घा... -II. iv.78
देखें-घ्राधेट्शाच्छासः II. iv.78 ....घा... -III.i. 135
देखें-पाघ्राध्या. III. 1. 135 ....घा.. -VII. 11. 78
देखें- पाघ्राध्या० VII. iii. 78 घा.. - VII. iv. 31
देखें - घामो: VII. iv. 31 ...घा... - VIII. ii. 56
देखें - नुदविदोन्द० VIII. ii. 56
ध्वसो: - VI. iv. 119
घुसंज्ञक अङ्ग एवं अस् को (एकारादेश तथा अभ्यास का लोप होता है; हि,क्ङित् परे रहते)। ...वोः - I. ii. 17
देखें - स्थाध्वोः I. I. 17
-प्रत्याहारसूत्र III
...डस्... - IV. 1.2 आचार्य पाणिनि द्वारा अपने तृतीय प्रत्याहारसूत्र में देखें - स्वौजसमौट IV. i. 2 इत्संज्ञार्थ पठित वर्ण।
इस: - VII. I. 27 इ.. - VIII. iii. 28
(युष्मत् तथा अस्मत् शब्द से उत्तर) ङस् के स्थान में देखें -गो: VIII. iii. 28
(अश् आदेश होता है)। हु-प्रत्याहारसूत्र VII
...डसाम् - VII. 1. 12 भगवान् पाणिनि द्वारा अपने सप्तम प्रत्याहारसूत्र में देखें - टाइसिडसाम् VII. 1. 12 पठित तृतीय वर्ण।
...डसि... - IV..2 पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला देखें - स्वौजसमौट्छ IV.i.2 का सत्रहवां वर्ण।
असि... - VI. 1. 106 डम: - VIII. iii. 32
देखें - इसिडसो: VI. 1. 106 (हस्व पद से उत्तर वर्तमान) डमन्त पद से उत्तर (अच
डसि-VI. 1. 205 को नित्य ही ङमुट् आगम होता है)।
(युष्मद् तथा अस्मद् शब्दों के आदि को) डस् परे रहते डमुट् - VIII. iii. 32
(उदात्त होता है)। (हस्व पद से उत्तर जो डम.तदन्त पद से उत्तर अच को .
...डसि... -VII.i. 12 नित्य ही) डमुट् आगम होता है।
देखें - टासिडसाम् VII. 1. 12 यि-VI.i. 206
इसि... - VII. I. 15 डे विभक्ति परे रहते (भी युष्मद् , अस्मद् को आधुदात्त देखें - सिड्योः VII. i. 15 होता है)।
इसि - VII. ii. 96 यि - VII. 1. 95 (युष्मद्, अस्मद् अङ्ग के मपर्यन्त भाग को क्रमश. (युष्मद्, अस्मद् अङ्ग के मपर्यन्त भाग को क्रमश: तुभ्य.महय आदेश होते हैं): विभक्ति के परे रहते। तव तथा मम आदेश होते हैं).ङस विभक्ति के परे रहते।