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गुपेः - II. 1.50
गुरौ-VI. III. 10 गुप् धातु से उत्तर (छन्दविषय में च्लि के स्थान में (मध्य शब्द से उत्तर) गुरु शब्द के उत्तरपद रहते (सप्तमी विकल्प से चङ् आदेश होता है,कर्तृवाची लुङ् परे रहने विभक्ति का अलुक् होता है)। पर)।
....गुहाम् - VIII. II. 73 गुप्तिकिम्यः - III. 1.5
देखें- दुहदिहO VIII. ii. 73 . गुप,तिज,कित्- इन धातुओं से (स्वार्थ में सन् प्रत्यय ...गुहो: - VII. II. 12 होता है)।
देखें - ग्रहगुहो: VII. II. 12 ...गुरु.. - VI. . 157
...गूर्तानि - VIII. ii. 61 देखें-प्रियस्थिर० VI. 1. 157
देखें-नसत्तनिक्ता VIII. ii. 61 गुरू-I. iv. 11
...गृणः -I. iv. 41 (संयोग के परे रहते हस्व अक्षर की) गुरु संज्ञा होती देखें - अनुप्रतिगृणः I. iv. 41
गृधि.. -I. iii. 69 गुरुमतः -III. 1. 36
देखें - गृषिवज्च्योः . I. III. 69 (इजादि) गुरु अक्षर आदिवाली धातु से (आम्' प्रत्यय ...गृषि... - III. II. 140 होता है; लौकिक विषय में,लिट् परे रहते,ऋच्छ धातु को देखें - प्रसिधिo III. II. 140 छोड़कर)।
..गृधि.. - III. ii. 150 गुरुपोत्तमयोः - IV. 1.78
देखें-जुचक्रम्य० III. I. 150 (गोत्र में विहित ऋष्यपत्य से भिन्न अण और इज गधिवच्यो : -I. iii. 69 प्रत्यय अन्त वाले) उपोत्तम गुरुवाले प्रातिपदिकों को (ण्यन्त) गृधु और वच धातुओं से (आत्मनेपद होता है, (स्त्रीलिङ्ग में ष्यङ् आदेश होता है)।
ठगने अर्थ में)। उपोत्तम = तीन और तीन से अधिक वर्णों वाले शब्द
...गृष्टि..-II. 1.64
देखें-पोटायुवतिस्तोक II.1.64 के अन्तिम वर्ण से समीप का वर्ण।
...गृष्टि.. --VI. 1. 38 गुरुयोत्तमात् - V.1.131
देखें-बीहापराहण. VI. ii. 38 (षष्ठीसमर्थ,यकार उपधा वाले) गुरु है उपोत्तम जिसका, गृष्ट्यादिभ्यः - IV. 1. 136 ऐसे प्रातिपदिक से (भाव और कर्म अर्थों में वुज प्रत्यय गष्टयादि प्रातिपदिकों से (भी अपत्य अर्थ में ठब होता है)।
प्रत्यय होता है)। गुरोः -III. iii. 103
गृहपतिना - IV. iv. 90 (हलन्त) जो गुरुमान् धातु, उनसे (भी स्त्रीलिङ्ग कर्तृ- (तृतीयासमर्थ) गृहपति शब्द से (संयुक्त अर्थ में ज्य भिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप्रत्यय होता है)। प्रत्यय होता है, संज्ञाविषय में)। गुरोः - VIII. 1. 86
...गृहमेधात् - IV. ii. 31 (ऋकार को छोड़कर वाक्य के अनन्त्य) गरुसंज्ञक वर्ण देखें-द्यावापृथिवीशना० IV. 1.31 को (एक-एक करके तथा अन्त्य के टि को भी प्राचीन ...गृहि.. - III. I. 158 आचार्यों के मत में प्लुत उदात्त होता है)।
देखें-स्मृहिगृहि० III. 1. 158