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गति...
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गत्वरः
गति... -I. iii. 15
गतौ - VIII. 1. 70 देखें - गतिहिंसार्थेभ्यः I. ii. 15
गतिसंज्ञक के परे रहते (गतिसंज्ञक को अनुदात्त होता गति... -I. iv. 52 देखें-गतिबुद्धिमत्यवसाना० I. iv. 52
गतौ - VIII. iii. 113 ...गति... -II. ii. 18
गति अर्थ में वर्तमान (षिधु गत्याम्' धातु के सकार देखें-कुगतिप्रादयः II. ii. 18
को मूर्धन्य आदेश नहीं होता)। ...गति... -III. iv.76 देखें -ग्रौव्यगति० III. iv.76
गत्यर्थ... -I. iv. 68 गति... -VI. II. 139
देखें – गत्यर्थवदेषु I. iv. 68 देखें – गतिकारको० VI. 1. 139
गत्यर्थ... - III. iv.72 गति. -I. iv.59
देखें-गत्यकर्मक० III. iv. 72 (प्रादियों की क्रिया के योग में) गति संज्ञा (और उपसर्ग । संज्ञा भी) होती है।
(चेष्टा क्रिया वाली) गत्यर्थक धातुओं के (मार्गवर्जित गतिः -VI. 1. 49
कर्म में द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति होती है। (कर्मवाची क्तान्त उत्तरपद रहते पूर्वपदस्थ अव्यवहित) गत्यर्थलोटा - VIII. I. 51. गति को (प्रकृतिस्वर होता है)।
गति अर्थवाले धातुओं के लोट् लकार से युक्त (लुडन्त गतिः -VIII. 1.70
तिङन्त को अनदात्त नहीं होता.यदि कारक सारा अन्य न (गतिसंज्ञक के परे रहते) गतिसंज्ञक को (अनुदात्त होता हो तो)।
गत्यर्थवदेषु -I.iv. 98 गतिकारकोपपदात् - VI. ii. 139
गत्यर्थक और वद् धातु के प्रयोग में (अव्यय अच्छ गति, कारक तथा उपपद से उत्तर (कृदन्त उत्तरपद को शब्द गति और निपात संज्ञक होता है)। तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर होता है)।
गत्यकर्मकश्लिवशीस्थासवसजनसहजीर्यतिथ्यः - गतिबुद्धिात्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणाम् -I. iv. 52 III. iv. 72
गत्यर्थक, बुद्ध्यर्थक, भोजनार्थक, शब्दकर्म और गत्यर्थक, अकर्मक, श्लिष,शीङ्,स्था, आस, वस,जन, अकर्मक धातुओं का (जो अण्यन्तावस्था का कर्ता, वह रुह तथा जू धातुओं से विहित (जो क्त प्रत्यय, वह कर्ता ण्यन्तावस्था में कर्मसंज्ञक होता है)।
में होता है; चकार से भाव,कर्म में भी होता है)। गतिहिंसाधेभ्यः -1. iii. 15
गत्यर्थेभ्यः - III iii. 129 गत्यर्थक तथा हिंसार्थक धातुओं से (कर्मव्यतिहार अर्थ ___(वेदविषय में) गत्यर्थक धातुओं से (कृच्छ्, अकृच्छ् अमें आत्मनेपद नहीं होता है)।
थों में ईषदादि उपपद हों तो युच् प्रत्यय होता है)। गतौ -III. 1. 23
गत्यो: - VIII. iii. 40 गत्यर्थक धातुओं से (कुटिलता गत्यमान होने पर नित्य (नमस् तथा पुरस्) गतिसंज्ञक शब्दों के (विसर्जनीय को यङ् प्रत्यय होता है, क्रिया-समभिहार में नहीं होता)। सकारादेश होता है; कवर्ग, पवर्ग परे रहते)। गतौ - VII. ill. 63
गत्वरः -III. . 164 गति अर्थ में वर्तमान (वक्षु अङ्ग को कवर्गादेश नहीं गत्वर यह शब्द (भी) क्वरप् प्रत्ययान्त निपातन किया 'होता)।
जाता है।