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...खौ - V.1.54
देखें - लुक्खौ v. 1.54 ...खौ-V. 1. 16
देखें-यत्खौv.ii. 16 ख्य... -VI. I. 108 देखें-ख्यत्यात् VI. 1. 108 ख्य -III. 1.7
(सम् उपसर्ग पूर्वक) ख्या धातु से (कर्म उपपद रहते 'क' प्रत्यय होता है)। ख्यत्यात् - VI. 1. 108
ख्य और त्य से (परे सि तथा ङस अकार के स्थान में उकार आदेश होता है,संहिता के विषय में)।
...ख्या.. -VIII. 1. 57
. देखें- ध्याख्या० VIII. I. 57 ख्या -II. iv.54 (चक्षिङ् के स्थान में, आर्धधातुक के विषय में) ख्याञ् आदेश होता है। ...ख्यातिथ्यः -III. I. 52
देखें - अस्यतिवक्ति III. I. 52 ख्यु - III. ii. 56 (व्यर्थ में वर्तमान अच्चिप्रत्ययान्त आढ्य, सुभग, स्थूल,पलित,नग्न,अन्ध तथा प्रिय कर्म उपपद रहते कब धातु से करण कारक में) ख्युन् प्रत्यय होता है। .. .
ग-1.1.5
गण... -III. iii. 86 देखें-विक्डति 1.1.5
देखें-गणप्रशंसयोः III. 11.86 ग-प्रत्याहारसूत्र x.
....गण..-v.i1.52 भगवान पाणिनि द्वारा अपने दशम प्रत्याहारसत्र में देखें-बहुपूग० V. ii. 52 पठित तृतीय वर्ण।
गण -VII. iv.97 पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला गण धातु के (अभ्यास को ईकारादेश तथा चकार से का सत्ताइसवां वर्ण।
अकारादेश भी होता है,चङ्परक णि परे रहते)। ... ग..-VI. iii. 51
...गणम् - IV. iv.84 देखें- आज्यातिगो० VI. ii. 51
देखें-धनगणम् IV. iv.84 ग:-III. 1. 146
...गणात् - V.iv.73 .
देखें- अबहुगणात् V. iv.73 गै धातु से (थकन्' प्रत्यय होता है,शिल्पी कर्ता वाच्य । हो तो)।
...गणि.. -VI. iv. 165
देखें - गाथिविदथि० VI. iv. 165 गच्छति-IV. iii. 85
गणप्रशंसयोः - III. ii. 86. (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से) गच्छति क्रिया के (पथ
(संघ और उद्घ शब्द यथासंख्य करके) गण = समूह तथा दूत कर्ता अभिधेय होने पर यथाविहित प्रत्यय होता
तथा प्रशंसा = स्तुति गम्यमान होने पर (निपातन किये
जाते हैं, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। गच्छति -V.1.73
...गत... - II. I. 23 (द्वितीयासमर्थ योजन प्रातिपदिक से)'जाता है' अर्थ में देखें-श्रितातीतपतित० II.1. 23 (यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)।
गतः -IV.iv.86 ...गण.. -1.1.22
(द्वितीयासमर्थ वश प्रातिपदिक से) प्राप्त हुआ अर्थ में देखें- बहुगणवतुडति I. 1. 22
(यत् प्रत्यय होता है)।