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किया-V.I. 114
क्रियायाम्-III. I. 11 (ततीयासमर्थ प्रातिपदिकों से 'समान' अर्थ में वति क्रिया के निमित्त यदि) क्रिया उपपद में हो (तो धातु प्रत्यय होता है, यदि वह समानता) क्रिया की हो तो। से भविष्यत् काल में तुमुन् तथा ण्वुल् प्रत्यय होते है)। क्रियागणने - VI. I. 162
क्रियायोगे -I. iv. 58 (बहुव्रीहि समास में इदम्, एतत्, तद् से उत्तर) क्रिया के (प्रादिगणपठित शब्द निपात-सजक होते है, तथा) गणन में वर्तमान (प्रथम तथा पूरण प्रत्ययान्त शब्दों को क्रिया के साथ प्रयुक्त होने पर (वे उपसर्गसजक होते अन्तोदात्त होता है)। क्रियातिपतौ - III. II. 139
क्रियार्थायाम् - III. ii. 10 (भविष्यकाल में लिङ्गका निमित्त होने पर) क्रिया का एक क्रिया के लिये (यदि दूसरी क्रिया उपपद में हो तो उल्लंघन अथवा सिद्ध न होना गम्यमान हो तो (धातु से धातु से भविष्यत् काल में तुमन तथा ण्वुल प्रत्यय होते लङ् प्रत्यय होता है)। क्रियान्तरे - III.in.57
क्रियाथोंपपदस्य-II. iii. 14 क्रिया के व्यवधान में वर्तमान (अस तथा तष क्रिया के लिये क्रिया उपपद में जिसके, ऐसी (अप्रयुधातुओं से कालवाची द्वितीयान्त शब्द उपपद रहते णमुल ज्यमान) धातु के (अनभिहित कर्मकारक में भी चतुर्थी प्रत्यय होता है)।
विभक्ति होती है)। क्रियाप्रबन्य... III. 1. 135.
क्रियासमभिहारे -III.1.22 देखें- क्रियाप्रबन्यसामीप्ययोः II. iii. 135 क्रिया के बार-बार होने या अतिशयता अर्थ में (एकाच, 'क्रियाप्रबन्यसामीप्ययोः -III. II. 125
हलादि धातु से 'यङ्' प्रत्यय होता है)। क्रियाप्रबन्ध तथा सामीप्य गम्यमान हो तो (धातु से
क्रियासमभिहारे - III. iv. 2 अनद्यतन के समान प्रत्ययविधि नहीं होती है)।
क्रिया का पौनःपुन्य गम्यमान हो तो (धातु से धात्वर्थ
सम्बन्ध होने पर सब कालों में लोट् प्रत्यय हो जाता है, क्रियाप्रश्ने - VIII. 1. 44
और उस लोट् के स्थान में सब पुरुषों तथा वचनों में हि क्रिया के प्रश्न में वर्तमान (किम् शब्द से युक्त उप- और स्व आदेश नित्य होते हैं, तथा त ध्वम् भावी लोट सर्ग-रहित तथा प्रतिषेधरहित तिङन्त को अनुदात्त नहीं के स्थान में विकल्प से हि, स्व आदेश होते है)। होता।
क्रियासातत्ये-VI.i. 138 क्रियाफले - I. ii. 72
क्रिया का निरन्तर होना गम्यमान हो तो (अपरस्पराःशब्द (स्वरितेत् तथा जित् धातुओं से आत्मनेपद होता है. में सुट् आगम निपातन किया जाता है)। यदि) क्रिया का फल (कर्ता को मिलता हो तो)।
क्री...VI.i.47
देखें- क्रीजीनाम् VI.I. 47 क्रियाभ्यावृत्तिगणने - V. iv. 17
क्रीजीनाम् -VI.i.47 "क्रिया के बार-बार गणन' अर्थ में वर्तमान
__ 'डुक्री करणे', 'इङ् अध्ययने' तथा 'जि जये' धातुओं (सङ्ख्यावाची प्रातिपदिकों से स्वार्थ में कृत्वसुच् प्रत्यय के (एच के स्थान में णिच प्रत्यय के परे रहते आकारादेश होता है)। . .
हो जाता है)। क्रियाया -III. ii. 126
क्रीड-I. iii. 21 क्रिया के (लक्षण तथा हेतु अर्थ में वर्तमान धातु से लट् (अनु, सम्, परि और आयूर्वक) क्रीड् धातु से के स्थान में शत,शानच आदेश होते है)।
(आत्मनेपद होता है)।