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क्यात्
क्यात् - III. ii. 170
क्यप्रत्ययान्त धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हो, तो वर्त - मानकाल में वेदविषय में उ प्रत्यय होता है)।
क्ये - I. iv. 15
क्यच् क्यछ और क्यष् परे रहते (नकारान्त शब्दरूप की पद संज्ञा होती है।
ऋतु.. - IV. 1. 59
देखें - क्रतूक्थादिसूत्रान्तात् IV. 1. 59
ऋतु ... IV. iii. 68
देखें क्रतुयज्ञेभ्यः IV. III. 68
क्रतूक्थादिसूत्रान्तात् - IV. ii. 59
(द्वितीयासमर्थ) क्रतु विशेषवाची, उक्थादि तथा सूत्रान्त प्रातिपदिकों से (अध्ययन तथा जानने का कर्त्ता अभिधेय हो तो ठक् प्रत्यय होता है) ।
क्रतु = यज्ञ ।
उक्थ = साम का लक्षण ग्रन्थ
क्रतुयज्ञेभ्य
IV. iii. 68
क्रतुवाची और यज्ञवाची (व्याख्यातव्यनाम षष्ठी तथा सप्तमीसमर्थ) प्रातिपदिकों से भी व्याख्यान और भव अर्थों में ठञ् प्रत्यय होता है) ।
क्रतौ
1
III. i. 130
क्रतु = यज्ञविशेष की संज्ञा अभिषेय हो तो (कुण्डपाय और संचाय्य शब्द निपातन किये जाते हैं)।
क्रतौ
-
VI. ii. 97
क्रतुवाची समास में (द्विगु उत्तरपद रहते पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)।
...
-
-
क्रत्वादयः - VI. ii. 118
(सु से उत्तर) क्रत्वादि शब्दों को (भी आद्युदात्त होता
1
कथानाम् - VI. 1. 210
देखें - त्यागरागo VI. 1. 210
...क्रम III. 1. 67
देखें – जनसन... III. 1. 67
...
174
क्रम. - I. iil. 38
(वृत्ति, सर्ग और तायन अर्थों में वर्तमान) क्रम् धातु से (आत्मनेपद होता है)।
क्रम: - VI. Iv. 18
क्रम् अङ्ग की उपधा को भी झलादि क्त्वा परे रहते विकल्प से दीर्घ होता है) ।
-
क्रमः
VII. 11.76
क्रमु अङ्ग को (परस्मैपदपरक शित् के परे रहते दीर्घ होता है)।
क्रमणे III.1.14
क्रिया
कुटिलता अर्थ में (चतुर्थी समर्थ कष्ट शब्द से 'क्य' प्रत्यय होता है)।
कमादिभ्यः - IV. 1. 60
(द्वितीयासमर्थ) क्रमादि प्रातिपदिकों से (अध्ययन तथा जानने का कर्ता अभिधेय होने पर वुन् प्रत्यय होता है) ।.
.... क्रमु... - III. 1. 70
देखें - प्राशभ्लाश० III. 1. 70 ...क्रमो : - VII. 1. 36
देखें- नुक्रमो VII. 1. 36
... क्रयविक्रयात् - IV. Iv. 13
देखें - वस्नक्रयविक्रयात् IV. Iv. 13
क्रव्य: - VI. 1. 79
क्रम्य शब्द का निपातन किया जाता है, उसी अर्थ में अर्थात् क्रयार्थ अभिधेय होने पर।
क्रव्ये - III. ii. 69
क्रव्य (सुबन्त उपपद रहते (भी अद् धातु से विट् प्रत्यय होता है।
... क्राथ
II. iii. 56
देखें - जासिनिग्रहणo II. III. 56 किए - 1. III. 18 क्रिय:
000
(परि, वि तथा अव उपसर्ग पूर्वक) 'डुक्रीज्' धातु से (आत्मनेपद होता है)।
क्रिया
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- IV. ii. 57
(प्रथमासमर्थ) क्रियावाची (भजन्त प्रातिपदिक से सप्त
म्यर्थ में ज प्रत्यय होता है)।