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औ
औ -
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VII. ii. 107
(अदस् अङ्ग को) औ आदेश (तथा सु का लोप होता.
है) ।
औक्थिक... - IV. III. 128 iii.
देखें - छन्दोगौक्थिकo IV. iii. 128
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औक्षम् VI. Iv. 173
( अनपत्यार्थक अण् परे रहते) औक्षम् यहाँ टिलोप निपातन किया जाता है।
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औड - VII. 1. 18
( आबन्त अङ्ग से उत्तर) और औ तथा और के स्थान में (शी आदेश होता है ) ।
... और... - IV. 1. 2.
देखें - स्वौजसमौट् IV. 1. 2
औत् - VII. 1. 84
(दिव् अङ्ग को सु परे रहते) औकारादेश होता है।
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क् - प्रत्याहारसूत्र II
भगवान् पाणिनि द्वारा अपने द्वितीय प्रत्याहार सूत्र में इत्सञ्ज्ञार्थ पठित वर्ण ।
इससे तीन प्रत्याहार बनते हैं अक्, इक् और उक् ।
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.. क् - I. 1. 5
देखें विडति 1.1.5
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क्... - VI. iv. 15
देखें fasfar VI. iv. 15
क्... - VI. iv. 24
देखें fisfir VI. iv. 24
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क्... - VI. iv. 63
देखें- fafi VI. iv. 63
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=
क्...
VI. iv. 98
देखें - क्ङिति VI. iv. 98
क्...
VII. iv. 22
देखें fasfa VII. iv. 22
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141
क... - VIII. iii. 37
देखें - क= पौ VIII. iii. 37
= क पौ - VIII. iii. 37
(कवर्ग तथा पवर्ग परे रहते विसर्जनीय को यथासङ्ख्य करके) = क अर्थात् जिह्वामूलीय तथा प अर्थात्
क
औत् VII. III. 118
(इकारान्त, उकारान्त अङ्ग से उत्तर ङि को) औकारादेश होता है, तथा मिसञ्ज्ञक को अकारादेश होता है)। औपम्ययोः
देखें
औपम्ये - 1. iv. 78
(जीविका और उपनिषद् शब्दों की उपमा के विषय में (कृञ् के योग में नित्य गति और निपात संज्ञा होती है) । औपम्ये - IV. 1. 69
( शब्द उत्तरपद वाले प्रातिपदिकों से) औपम्य गम्यमान होने पर (स्त्रीलिंग में कुछ प्रत्यय होता है)। औश् औ - VII. 1. 21
VI. ii. 113
संज्ञौपम्ययो: VI. . 113
(आत्व किये हुये अष्ट शब्द से उत्तर जस् और शस् के स्थान में) और आदेश होता है।
उपध्मानीय आदेश होते है (तथा चकार से विसर्जनीय भी होता है) ।
(=क= जिह्वामूलीय, पउपध्मानीय ) ।
क - प्रत्याहारसूत्र XII.
में पठित प्रथम वर्ण।
क
- पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का अड़तीसवां वर्ण ।
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आचार्य पाणिनि द्वारा अपने बारहवें प्रत्याहार सूत्र
III. ii. 77
(सोपसर्ग या निरुपसर्ग स्था धातु से सुबन्त उपपद रहते)
क (तथा क्विप्) प्रत्यय होता है।
क
...क
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III. iii. 83
(स्तम्ब शब्द उपपद रहते हुए करण कारक में हन् धातु से) क प्रत्यय ( तथा अप् प्रत्यय भी होता है और अप प्रत्यय परे रहने पर हन को घन आदेश भी हो जाता है)।
...क.....
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- IV. ii. 79
— gyvado IV. ii. 79
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क - IV. ii. 139
(राजन् शब्द से शैषिक छ प्रत्यय होता है, तथा उसको) क अन्तादेश (भी) होता है।
... क - VII. 1. 9
देखें
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तितुत्रo VII. II. 9