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....एघ...
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...एध... -VI. iv. 29
एव-III.i.88 देखें - अवोदैधौ० VI. iv. 29
(तप सन्तापे' धातु के कर्ता को कर्मवभाव हो जाता ...एधति... -VI.i.86
है,यदि वह तप धातु तप कर्मवाली) ही हो.(अन्य किसी देखें - एत्येधत्यूठसु VI.i. 86
कर्म वाली न हो)। एघाच - V. iii. 46
एव-III. iv.70 (द्वि तथा त्रि सम्बन्धी धा प्रत्यय को विकल्प से) एधाच (कृत्यसंज्ञक प्रत्यय, क्त और खल अर्थ वाले प्रत्यय . आदेश (भी) होता है।
भाव और कर्म में) ही (होते है)। एन: -II. iv. 34
एव-III. iv. 111 (अन्वादेश में वर्तमान इदम् और एतद् के स्थान में (आकारान्त धातुओं से उत्तर लङके स्थान में जो झि द्वितीया, टा और ओस विभक्ति परे रहते) एन आदेश आदेश उसको जुस् आदेश होता है,शाकटायन आचार्य होता है।
के मत में) ही। एनप -V.iii. 35
एव-IV. iii.69 (दिशा,देश और काल अर्थों में वर्तमान पञ्चम्यन्तवर्जित
(षष्ठी तथा सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनाम ऋषिवाची सप्तमीप्रथमान्त दिशावाची उत्तर अधर और दक्षिण प्राति
प्रातिपदिकों से भव,व्याख्यान अर्थों में अध्याय गम्यमान पदिकों से विकल्प से) एनप् प्रत्यय होता है, (निकटता।
होने पर) ही (ठञ् प्रत्यय होता है)। गम्यमान हो तो)।
एव-v.ill.58 एनपा-II. iii. 31
(इस प्रकरण में कहे गये अजादि प्रत्यय अर्थात्
इष्ठन, ईयसुन गुणवाची प्रातिपदिक से) ही (होते है)। . एनप प्रत्ययान्त के योग में द्वितीया विभक्ति होती है)।
एव -VI. 1.77 ....एय... -VII.1.2
' (यकारादि प्रत्यय-निमित्तक) ही (जो धातु का एच, देखें-आयनेयी० VII.i.2
उसको यकारादि प्रत्यय के परे रहते वकारान्त अर्थात् अव, ...एलयति - III.i. 51
आव आदेश होते है,संहिता के विषय में)। देखें-ऊनयतिध्वनयति III. 1.51 एव-I.1.65
एव - VI. ii. 80 (वृद्ध = गोत्र प्रत्ययान्त शब्द युवा प्रत्ययान्त के साथ
(शब्दार्थवाली प्रकृति है जिन णिनन्त शब्दों की,उनके
उत्तरपद रहते) ही (उपमानवाची पूर्वपद को आधुदात्त होता शेष रह जाता है, यदि वृद्ध युव प्रत्यय-निमित्तक) ही (भेद हो तो)। एव-I. iv.8
एव-VI. II. 148
(सज्ञाविषय में आशीर्वाद गम्यमान हो तो कारक से (पति शब्द समास में) ही घिसंज्ञक होता है)। .
उत्तर क्तान्त दत्त तथा श्रुत शब्दों को) ही (अन्त उदात्त होता एव - II. ii. 20
(अव्यय के साथ उपपद का यदि समास होता है तो एव-VI. iv. 145 वह अमन्त अव्यय के साथ) ही (होता है, अन्य अव्ययों (अहन अङ्ग के टि भाग का ट तथा ख तद्धित प्रत्यय के साथ नहीं)।
परे रहते) ही (लोप होता है)। एव-II. iv. 62
pa - VIII: i. 62 (बहुत्व अर्थ में वर्तमान तद्राजसंज्ञक प्रत्यय का लुक (च तथा ह का लोप होने पर प्रथम तिङन्त को अनुदात्त होता है,स्त्रीलिंग को छोड़कर यदि वह बहुत्व उस तद्राज- नहीं होता यदि) एव (शब्द वाक्य में अवधारण अर्थ में संझक-कृत) ही (हो तो)।
प्रयुक्त किया गया हो तो)।