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________________ एकस्य 134 एकादेशः एकस्य-V. iii.92 एकाचः - VI. iii.67 (किम,यत् तथा तत् प्रातिपदिकों से दो में से एक का (खिदन्त उत्तरपद रहते इजन्त) एकाच को (अम् आगम (पृथक्करण अर्थ में डतरच प्रत्यय होता है)। होता है, और वह अम् प्रत्यय के समान भी माना जाता एकस्य-V.iv. 19 एक शब्द के स्थान में (क्रियागणन' अर्थ में सकत एकाच: - VII. ii. 10 आदेश तथा सुच् प्रत्यय होता है) । (उपदेश में) एक अच् वाले (तथा अनुदात्त) धातु से उत्तर एकस्य -VI. iii.75 (इट का आगम नहीं होता)। (एक है आदि में जिसके, ऐसे नञ् को भी उत्तरपद परे एकाचः - VIII. ii. 37 रहते प्रकृतिभाव होता है तथा) एक शब्द को (आदुक् का (धातु का अवयव) जो एक अच् वाला (तथा झपन्त), आगम होता है)। उसके अवयव (बश् के स्थान में भष् आदेश होता है, एकहलादौ-VI. iii. 58 झलादि सकार तथा झलादि ध्व शब्द के परे रहते, पदान्त (जिसको पूरा किया जाना चाहिये,तद्वाची) एक = अस- में)। हाय हल है आदि में जिसके, ऐसे शब्द के उत्तरपद रहते एकाजाधसाम् -VII. ii.67 (विकल्प करके उदक शब्द को उद आदेश होता है)। (कृतद्विर्वचन) एकाच धातु तथा आकारान्त एवं घस् से (कतद्विर्वचन) एकाच धात तथा आका एकहल्मध्ये - VI. iv. 120 उत्तर (वसु को इट् आगम होता है)। . . . (लिट् परे रहते जिस अङ्ग के आदि को आदेश नहीं हुआ एकाजुत्तरपदे - VIII. iv. 12 है, उसके) असहाय हलों के बीच में वर्तमान (अकार को एक अच् है उत्तरपद में जिस समास के,वहां (पूर्वपद में एकारादेश तथा अभ्यासलोप हो जाता है; कित,डित् लिट् स्थित निमित्त से उत्तर प्रातिपदिकान्त, नुम् तथा विभक्ति परे रहते)। के नकार को णकार आदेश होता है)। एका-I. iv.1 एकात् - V.iii.44 (कडाराः कर्मधारये' II. ii. 38 सूत्र तक) एक (संज्ञा 'एक' प्रातिपदिक से उत्तर (जो धा प्रत्यय, उसके स्थान होती है, यह अधिकार है)। में विकल्प से ध्यमु आदेश होता है)। . एकाच -I.i. 14 एकात् - V. iii. 52 (आङ से भिन्न) एक स्वर वाले (निपातसंज्ञक शब्दों की अकेले' अर्थ में वर्तमान) 'एक' प्रातिपदिक से (आकिप्रगृह्य संज्ञा होती है)। निच् प्रत्यय तथा कन् और लुक् होते है)। एकाच - VI. iv. 163 एकात् -V.11.94 (भसञक) एक अच् वाला अङ्ग (प्रकृतिवत् बना रहता एक प्रातिपदिक से (भी अपने अपने विषयों में डतरच है; इष्ठन्, इमनिच, ईयसुन् परे रहते)। तथा डतमच प्रत्यय होते है,प्राचीन आचार्यों के मत में)। एकाच... -VII. ii.67 एकादशभ्यः -V. 11:49 . देखें - एकाजाद्घसाम् VII. ii. 67 (भाग' अर्थ में वर्तमान पूरण-प्रत्ययान्त) एकादश एकाच -III.1.22 सङ्ख्या से पहले पहले जो सङ्ख्यावाची शब्द, उनसे एक अच् है जिसमें, ऐसी (हलादि धातु) से (क्रियासम- (स्वार्थ में अण् प्रत्यय होता है, वेद-विषय को छोड़कर)। भिहार या अतिशय अर्थ में यङ् प्रत्यय होता है)। एकादिः -VI. iii.75 एकाचः -VI.1.1 एक है आदि में जिसके, ऐसे (नज) को (भी उत्तरपद परे (प्रथम) एक अच् वाले समुदाय को (द्वित्व हो जाता है)। रहते प्रकृतिभाव होता है, तथा एक शब्द को आदुक् का एकाच -VI.i. 162 आगम होता है)। (सप्तमी बहुवचन सु के परे रहते) एक अच वाले शब्द एकादेश: - VIII. 1.5 से उत्तर (तृतीया विभक्ति से लेकर आगे की विभक्तियों (उदात्त के साथ हुआ अनुदात्त का) एलादेश (उदात्त होता को उदात्त होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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