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________________ आत्मनः आदरानादरयोः आत्मनः -III. 1.8 आत्मनेपदेषु - VII. i.5 (इच्छा करने वाले व्यक्ति के) आत्मीय (इच्छा) के (सुबन्त (अनकारान्त अङ्ग से उत्तर) आत्मनेपद में वर्तमान (जो कर्म से इच्छा अर्थ में विकल्प से क्यच् प्रत्यय होता है)। प्रत्यय का झकार,उसके स्थान में अत आदेश होता है)। आत्मनः - VI. iii.7 आत्मनेपदेषु - VII.i. 41 (वेद-विषय में) आत्मनेपद में वर्तमान (तकार का लोप आत्मन् शब्द से परे (भी तृतीया का अलुक् होता है, हो जाता है)। उत्तरपद परे रहते)। आत्मनेपदेषु - VII. H. 42 आत्मनः -VI. iv. 141 (वृ तथा ऋकारान्त धातुओं से उत्तर) आत्मनेपदपरक (मन्त्र-विषय में आङ् = टा परे रहते) आत्मन् शब्द के लिङ् तथा सिच् को विकल्प से इट् आगम होता है)। (आदि का लोप होता है)। आत्मविश्वजनभोगोत्तरपदात् -v.i.9 . आत्मनेपदनिमित्ते - VII. ii. 36 . (चतुर्थीसमर्थ) आत्मन, विश्वजन तथा भोग शब्द उत्त(स्नु तथा क्रम् धातुओं के वलादि आर्धधातुक को इट् रपद वाले प्रातिपदिकों से (हित' अर्थ में ख प्रत्यय होता आगम होता है,यदि स्नु तथा क्रम्) आत्मनेपद के निमित्त । न हों तो। आत्मप्रीतौ-VII.1.51 आत्मनेपदम् -I. iii. 12 . (अश्व, क्षीर,वृष,लवण- इन अङ्गों को क्यच् परे रहते) (अनुदात्तेत् तथा ङित् धातु से) आत्मनेपद होता है। आत्मा की प्रीति विषय में (असुक् आगम होता है)। आत्मनेपदम्-I. iv.99 आत्ममाने -III. 1.83 . (तङ् अर्थात् त, आताम्, झ, थास, आथाम, ध्वम्, इड्, आत्ममान अर्थात् 'अपने आप को मानना' अर्थ में वहि,महिङ् और आन अर्थात् शानच् तथा कानच् प्रत्ययों वर्तमान (मन् धातु से सुबन्त उपपद रहते खश् और चकार से 'णिनि' प्रत्यय होता है)। की) आत्मनेपद संज्ञा होती है। आत्मम्मरिः -III. ii. 26 आत्मनेपदानाम् - III. iv.79 आत्मम्भरि शब्द इन्प्रत्ययान्त निपातन किया जाता है। (टित् अर्थात् लट्,लिट्,लुट्,लृट,लेट, लोट् लकारों के) जो आत्मनेपदसंज्ञक त,आताम.झ आदि आदेश- उनके आत्मा ... -VI. iv. 169 (टि भाग को एकार आदेश हो जाता है)। देखें-आत्माध्यानौ VI. iv. 169 आत्मनेपदे - VII. iii. 73 आत्माध्वानी - VI. iv. 169 (दुह प्रपूरणे,दिह उपचये,लिह आस्वादने,गुह संवरणे- (भसञ्जक) आत्मन् तथा अध्वन् अङ्गों को (ख प्रत्यय इन धातुओं के क्स का विकल्प से लुक होता है,दन्त्य परे रहते प्रकृतिभाव होता है)। अक्षर आदिवाले) आत्मनेपदसञक प्रत्ययों के परे रहते। ...आथर्वणिक... -VI. iv. 174 आत्मनेपदेषु -I. ii. 11 देखें - दाण्डिनायनहास्ति० VI. iv. 174 आत्मपेपद विषय में (इक्समीप हल वाले धातु से परे ...आथाम् ... -III. iv. 78 झलादि लिङ् तथा सिच् प्रत्यय कित्वत् होते हैं)। देखें - तिप्तस्झि० III. iv. 78 आत्मनेपदेषु -II. iv.44 ...आद् ... - II. iv. 80 आत्मनेपद प्रत्ययों के परे रहते (हन को वध आदेश देखें - घसहरणश II. iv. 80 विकल्प से होता है, लुङ् लकार में)। आदर ... -I..iv. 62 आत्मनेपदेषु - III. 1.54 देखें-आदरानादरयोः I. iv.62 । (कर्तवाची लुङ) आत्मनेपद परे रहते (लिप.सिच और आदरानादरयोः -I.iv.62 हज् धातु से उत्तर लि को विकल्प से अङ आदेश होता (क्रमशः) आदर एवं अनादर अर्थों में वर्तमान (सत और असत् शब्द क्रियायोग में गति और निपातसंज्ञक होते है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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