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________________ Aumanum o momorreneursundaramwwwamres concenarernam aAKAananamarpavemaARWALAnimasaram. अक्षयतृतीयावत वृहत् जैन शब्दार्णव अक्षयनिधिबत "श्रेयाँस' ने "श्रीऋषभदेव" जी को इक्षुरस | शु. १० को हर वर्ष १० वर्ष तक यथाका निरन्तराय आहार दे कर प्रथम पारणा विधि उत्तम. मध्यम या जघन्य एक कराया जिसके सातिशय पुन्य से उसी एक उपवास या प्रोषधोपवास. किया समय उस के यहां देवोंकृत पञ्चाश्चर्य हुए जाता है । ब्रत के दिन “ॐ नमो नेमऔर उसके रसोई गृह में उस दिन के लिये नाथाय" या "ॐ श्री नेमनाथाय नमः" अक्षय अर्थात् अटूट भोजन हो गया जिस इन में से किसी एक मंत्र की कम से कम । से इस तिथी का नाम "अक्षयतृतीया" १० जाप की जाती हैं और दश वर्ष के प्रसिद्ध हुआ॥ पश्चात् देवार्चन पूर्वक यथाशक्ति १० अक्षय तृतीया व्रत-इस व्रत में बैशाख प्रकार को एक एक या दश दश उपयोगी शु•३ को केवल एक एक उत्तम मध्यम या वस्तु (शास्त्र, धोती, दुपट्टा, थाली, लोटा जघन्य उपवास ३ वर्ष तक यथा-विधि इत्यादि) एक या दश देवस्थानों में चढ़ाई। किया जाता है। ब्रत के दिन “ॐ नमः जातो हैं या गरीब विद्यार्थियों या अन्य ऋषभाय" या "ॐ श्रीऋषभायनमः' इस दुखित भुक्षित या अपाहजों को दी जाती मंत्र की कम से कम ३ जाप की जाती हैं । हैं तथा इसके अतिरिक्त सम दान के रूप में | ब्रत का सम्पूर्ण समय सर्व गृहारम्भ त्याग साधर्मी पुरुषों में भी हर्ष पूर्वक बांटी। जाती हैं । उद्यापन की शक्ति न हो तो! कर शास्त्र स्वाध्याय, देवार्चन, धर्म चर्चा, मंत्र जाप, स्तोत्र पाठ आदि धर्मध्यान के | दूने व्रत किये जाते है ॥ कार्यों में व्यतीत किया जाता है । ३ वर्ष | अक्षय दशमी व्रत कथा-इस कथा के | के पश्चात् यथा विधिऔर यथाशक्ति व्रतो. सम्बन्ध में लिखा है कि श्रीशुभङ्कर नामक द्यापन किया जाता है या दूने व्रत कर दिये एक अवधि ज्ञानी मुनि के उपदेश से एक जाते हैं। राजगृही नगर नरेश "मेघनाद" और | अक्षय दशमी-श्रावण शु० १०;श्रीनेमनाथ उसकी स्त्री "पृथ्वी देवी” ने दश वर्ष | तीर्थङ्कर ने श्रावण शु० ६ को दीक्षा ग्रहण तक यह व्रत विधि पूर्वक किया; व्रत पूर्ण की उसके ३ दिन पीछे इसी मिती को होने पर यथा विधि बड़े उत्साह के साथ | द्वारिकापुरी महाराज "वरदत्त" के हस्तसे उसका उद्यापन किया जिसके महात्म्य से , प्रथम पारणा किया था जिस के पुण्योदय | उन पुत्र बिहीन दम्पति के कई पुत्र पुत्रियां या माहात्म्य से राजा के रसोई गृह में उस | हुई और अन्त में समाधि मरण से शरीर दिन के लिये अटूट भोजन हो गया। इसी त्याग कर प्रथम स्वर्ग में जा जन्म लिया ॥ कारण इस तिथि का यह नाम प्रसिद्ध | अक्षयनिधिव्रत-एक व्रत है जिसमें श्रावण हुआ॥ शु० १० को यथाविधि "प्रोषधोपवास," अक्षय दशमी व्रत-इस व्रत में श्रावण | फिर श्रावण शक्का ११ से भाद्रपद कृ. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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