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________________ अक्षदन्त "नर द्वितीय" का पुत्र था ॥ ( देखो ग्रन्थ " वृहत् विश्व चरितार्णव " अक्षदन्त-दुर्योधनादिकौरवों के पिता ( २७ } वृहत् जैन शब्दार्णव धृतराष्ट्र के वंश का एक राजा - यह महाभारत युद्ध के पश्चात् दक्षिण देश के एक " हस्तिवप्र " नामक नगर में राज्य करता था और यादवों व पाण्डवों से शत्रुता का भाव हृदय में रखता था । द्वारिकापुरी "द्वीपायन" मुनि की क्रोधाग्नि द्वारा भस्म हो जाने के पीछे जब श्रीकृष्ण नारायण और श्रीबलदेव बलभद्र दोनों भाई दक्षिण मथुरा ( मदुरा ) की ओर पाण्डवों के पास को जा रहे थे तो मार्ग में 'हस्तिवप्र' नगर के बाहर विजय नामक उपबन (बाग़ ) में यह ठहरे। बड़े भाई श्रीबलदेवजी भोजन सामग्री लेने नगर में गये, तभी ज्ञात हो जाने पर इस राजा "अक्षदन्त" ने इन्हें पकड़ लेने के लिये एक बड़ी सैना भेजी । दोनों भ्राताओं ने बड़ी चतुरता और वीरता के साथ लड़कर सारी सैना को भगा दिया और शीघ्रता से तुरन्त दक्षिण मथुरा की और फिर गमन किया । "कौ शाम्बी" नामक वन में पहुँचकर श्रीकृष्ण " जरा" ( यादववंशी जरत्कुमार ) नामक व्याध के तीर से मृग के धोखे में प्राणान्त हुए । (देखो ग्रन्थ " वृहत्विश्वचरितार्णव ") अक्षधर - आगे देखो रा० “अक्षोभ ( ३ )” अक्ष परिवर्तन [-अक्ष का अदल बदल, किसी प्रस्तार में पदार्थादि के किसी भेद या भङ्ग को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना या लौट फेर करना । इसी को C Jain Education International m For Personal & Private Use Only I 'अक्षसञ्चार' और अक्षसंक्रम या अक्षसंक्रमण भी कहते हैं । किसी पदार्थ के भेद आदि जानने की क्रिया विशेष के यह ५ अङ्ग या वस्तु हैं - (१) संख्या (२) प्रस्तार (३) अक्षसंचार ( ४ ) नष्ट (५) उद्दिष्ट | ( आगे देखो श० "अजीवगत हिंसा" का नोट १० ) ॥ ( मू. गा. १०३४, गो. जी. गा. ३५) क्षमाला - नाथवंश के स्थापक काशी देश के महामंडलेश्वर राजा " अकम्पन" की लघु पुत्री - इसकी एक बड़ी बहन 'सुलोचना' थी जिसके स्वयम्बर के समय इसका विवाह श्रीऋषभदेव ( प्रथम तीर्थङ्कर ) के पौत्र अर्थात् भरत चक्रवर्ती के ज्येष्ठ पुत्र "अर्क कीर्त्ति" के साथ किया गया था । इसका पति 'अर्ककीर्त्ति', अर्कवंश (सूर्य्यवंश) का प्रथम राजा था जो अपने पिता भरत चक्रवर्ती के पश्चात् अयोध्या की गद्दी पर बैठा और सम्पूर्ण भारत देश और उसके आस पास के कई देशों का अधिपति बना । ( देखो प्र० "वृ वि० च०" ) अक्षबात ( अक्षवाशु ) -- पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्वीय ऐरावत क्षेत्र की वर्त्तमान चौबीसी के द्वितीय तीर्थङ्कर । ( आगे देखो शब्द "अढ़ाई द्वीप पाठ" के नोट ४का कोष्ठ ३) अक्षमृक्षण- - धुरी को बांगना, गाड़ी के पहिये की धुरी को घी आदि चिकनाई लगा कर ऊँघना ॥ २. एक प्रकार की 'भिक्षावृत्ति' या 'भिक्षाशुद्धि', निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनियों की पञ्च प्रकारी भिक्षावृत्ति - ( १ ) गोचरी ( गो अक्षमृक्षण 2 www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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