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________________ emaintaminiummemoun t aMORE Arunaakaa lininance अकलङ्क अकलङ्क वृहत् जैन शब्दार्णव (२ लघीयत्रयी (लघुत्रयो ) "हरिवंशपुराण" के रचयिता "श्रीजिनसेना चार्य" तथा महापुराण के पूर्व भाग “श्री (३) चूर्णी आदि-पुराण' के रचयिता "श्रीभगवजिन(४) महाचूर्णो सेनाचार्य" के समकालीन थे। (५ : न्याय-चूलिका (२) भट्टाकलङ्क नाम से प्रसिद्ध एक जैन (६) तत्त्वार्थ राजवार्तिकालङ्कार ( श्री. विद्वान-यह अब से लगभग ७५० वर्ष मद्भगवत् “उमास्वामी” विरचित पूर्व वीर निर्वाण सम्वत् १७०० में (विक्रम 'तत्त्वार्थसूत्र' की संस्कृत टीका, १६ की तेरहीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ) बम्बई सहस्र श्लोकपरिमाण) प्रान्त के 'गोकरण' तीर्थ के पास कनारा देश के 'भटकल' नगरमें हुए । यह नगर पहिले (७) न्याय-विनिश्चयालङ्कार 'मणिपुर' नाम से प्रसिद्ध था जिसकी (८) न्याय कुमुदचन्द्र प्रभाचन्द्ररचित | पैरादेवी रानी ने, जो इन परम विद्वान इसको एकवृत्ति न्याय कुमुदचन्द्रो- महात्मा की अनन्य भक्त थी, इनकी प्रसिदय' है) द्धि के लिये इनके नाम पर अपने नगर का (६) शब्दानुशासन कनड़ो भाषा का नाम बदल कर 'भट्टाकलङ्क' नगर रखा व्याकरण संस्कृत भाषा में) (भट्ट संस्कृत में “परम विद्वान" तथा ब्रह्म शानी को कहते हैं)। यह नाम अपभ्रंश (१० अष्टशती ( उपर्युक्त 'तत्त्वार्थसूत्र' हो कर "भटकलनगर" या 'भटकल' कहकी स्वामी “समन्त भद्र" आचार्य लाने लगा । इन्होंने 'श्रावक-प्रायश्चित्' कृत ८४ सहस्र श्लोक परिमाण नामक ग्रन्थ रचकर आषाढ़ शु० १४ को संस्कृतटीका "गंधहस्तीमहाभाष्य" वि० सं० १२५६. वीर निर्वाण सम्वत् नामक के मङ्गलाचरण 'देवागम १७४४में समाप्त किया। 'अकलङ्क संहिता' स्तोत्र" का संस्कृत भाष्य ८०० या 'प्रतिष्ठाविधिरूपा' ८ सहस्र श्लोक श्लोकों में) परिमाण और भाषा मारी आदि अन्य कई (११) अकलङ्क प्रायश्चित ग्रन्थ भी इन्होंने रचे। (१२) अकलङ्काष्टक स्तोत्र (३) “अकलङ्क चन्द्र" नाम से प्रसिद्ध (१३) भाषामारी (२४०० श्लोक); आदि एक दिगम्बर भट्टारक- यह ग्वालेर (ग्वालिअनेक महान ग्रन्थों के रचयिता यह यर) की गही के दशवे पट्टाधीश थे । इन का जन्म आषाढ़ शु० १४ वीर निर्वाण आवार्य हैं। सम्बत् १६६७, विक्रम सम्बत् १२०६ में इन ही श्री अकलङ्क देव के शिष्य "श्री हुआ। १४ वर्ष की वय में दिगम्बरी दीक्षा प्रभावन्द्र" और "विद्यानन्द स्वामी' थे जी धारण की । ३३ वर्ष पश्चात् पूरे ४७ वर्ष - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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