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________________ ( २७७ ) . अण्डज वृहत् जैन शब्दार्णव अण्डज के सर्व ही प्राणी सम्मूर्छन ही होते हैं । और | पतले शरीराकार और स्वभाव, शक्ति और पंचेन्द्रिय जीव उपयुक्त तीनों प्रकार के अ- | कार्य कुशलता आदि किसी न किसी गुण र्थात् उप्पादज, गर्भज,और सम्मूर्छन होते हैं। विशेष की अपेक्षा से की जाती है । वास्तव नोट २-सर्व सम्मूर्छन प्राणी में उनमें गर्भज जीवों की समान शुक्रशोणित और उप्पादों में नारकी जीव सर्व ही नपुं- द्वारा सन्तानोत्पत्ति करने की योग्यता नहीं सक लिंगी होते हैं । देवगति के सर्व जीव | होती॥ पुल्लिंगी और स्त्रीलिंगी ही होते हैं । और म- | नोट ५-गर्भज और सम्मूर्च्छन दोनों र्भज जीव पुल्लिंगी, स्त्रीलिंगी और नपुंसक- प्रकार के अण्डज व कुछ अन्य प्राणियों के लिंगी तीनों प्रकार के होते हैं। सम्बन्ध में कुछ निम्न लिखित बातें शातव्य __नोट ३--अण्डे दो प्रकारके होते हैं- हैं जो पाश्चात्य विद्वानों और वैज्ञानिकों ने गर्भज ओर सम्मूर्छन । सीप, घोंघा, चींटी अपने अनुभव द्वारा जान कर लिखी हैं:-- (पिपीलिका ), मधुमक्षिका, अलि (भौंरा), १.घोंघा एक बार में लगभग ५० अण्डे बर, ततईया आदि विकलत्रय (द्वीन्द्रिय, | | देता है . श्रीन्द्रिय, चतुः इन्द्रिय) जीवों के अण्डे स. २. दीमक (स्वेत चींटी White akti) म्मूर्छन ही होते हैं जो गर्भसे उत्पन्न न होकर एक दित रात में गभग अस्सी सहन उन प्राणियों द्वारा कुछ विशेष जाति के पु. (८००००) अण्डे देती है। दगल स्कन्धों के संग्रहीत किये जाने और उन ३. मधुमक्षिका (मुमाखी ) एक फ़स्ल के शरीर के पसेव या मुख की लार (ष्टीवन) | में एकलक्ष (१०००००) तक अण्डे रखती है। गाजार की उष्णता आदि के संयोग से ४. कोई जाति की मकड़ी दो सहन अण्डाकार से बन जाते हैं । या कोई २ स-| (२०००) तक अण्डे देती है। म्मूर्छन प्राणीके सम्मूर्छन अण्डे योनि द्वारा ५. कछुवा एक बारमे ५०ले १५० तक उनके उदर से निकलते हैं, परन्तु वे उदर में | अण्डे देता है । भी गर्भज प्राणियों की समान पुरुष के शुक्र | ६. हंसनी जब अण्डे देना प्रारम्भ करती और स्त्री के शोणित से नहीं बनते, क्योंकि | है तो १५ या १६ दिन तक बराबर नित्य प्रति सम्मूर्छन प्राणी सर्व नपुंसकलिंगी ही होते | देती रहती है । हैं । और न वे योनि से सजीव निकलते हैं | ७. साधारणतः पक्षियों के अण्डे २, ३ किन्तु बाहर आने पर जिनके उदरसे निकलते या ४ तक एक बारमें होते हैं पर छोटी जाति हैं उनकी या उसी जाति के अन्य प्राणियोंकी के पक्षी १८ या २० तक अण्डे देते हैं। मख लार आदि के संयोग से उनमें जीवो- . पक्षियों में शुतरमी का अण्डा सब | से बड़ा लगभग एक फुट लम्बा होता है। नोट ४-सम्मूर्छन प्राणी सर्व ही . पक्षी साधारणतः बसन्त और नपंसकलिंगी होने पर भी उनमें नर मादीन गीष्म ऋतुओं में अंडे देते हैं, परन्तु राजहंस अर्थात पुल्लिंगी स्त्रीलिंगी होने की जो कल्पना | और कबूतर आदि कोई २ पक्षी इस नियम की जाती है वह केवल उनके बड़े छोटे, मोटे | से बाहर हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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