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वृहत् जैन शब्दार्णव
अढाईद्वीप
१५ हैं ।
बन समुद्र-तट के निकट ( विदेह देशों और समुद्र तट के बीच में ) हैं जो क्रम से सीता और सीतोदा नदियोंसे दो दो भागों में विभाजित हैं । अतः प्रत्येक मेरुसम्बंधी दो दो और पांचों मेरु सम्बन्धी १० देवारय या भूतारण्य नाम के वन हैं। इस प्रकार सर्व बन ( ५+१० ) (त्रि० गा० ६०७-६१२, ६७२ ) ॥ ६. कुलाचल ३० - - प्रत्येक मेरा सम्बन्धी दक्षिण से उत्तर दिशा को क्रम से ( १ ) हिमवत ( २ ) महा हिमवत ( ३ ) निषध (४) नील (५) रूक्मी (६) शिखरों नामक छह छह कुलाचल, भरत हैमवत आदि सात सात महाक्षेत्रों के बीच बीच में हैं। अतः पांचों मेरु सम्बन्धी सर्व कुलाचल (५४६) ३० हैं ॥
(त्रि० गा० ५६५, ७३१, ९२६ ) ॥ ७. अन्य पर्वत १५२० - - प्रत्येक मेरु सम्बन्धी यमगिरि ४ कांचनगिरि २००, दिग्गज ८, वक्षारगिरि १६, गजदन्त ४, विजयार्द्ध या वैताढ्य या रूरांचल ३४, वृषभाचल ३४, नाभिगिरि ४, एवम् सर्व ३०४ हैं । अतः पांचों मेरु सम्बन्धी सर्व ( ५× ३०४ ) १५२० हैं ।
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त्रि०गा०६५४,६५५,६५६
६६१,६६३, ६६५- ६७०, ७१०, ७१८, ७३१,६२६
८. इष्वाकार पर्वत ४- धातकी खण्ड द्वीप की दक्षिण उत्तर दोनों पावों में एक एक, और पुष्करार्द्ध की दक्षिण उत्तर दोनों पावों में भी एक एक, एवम् सर्व ४ हैं । [ त्रि०गा०९२५] इस प्रकार अढ़ाई द्वीप में ५ मेरु, ३० कुलाचल, इष्वाकार सहित सर्व पर्वतोंकी संख्या १५५६ है । इन के अतिरिक्त अढ़ाई
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अढाईद्वीप
द्वीपकी वाह्य सीमा पर उसे सर्व दिशाओं से बेढ़े हुये एक मानुषोत्तरपर्वत है । [ त्रि० गा० ९३७, ६४२ ]
हैं. मुख्यनदी ४५० - - प्रत्येक मेरु सम्बन्धी भरत आदि ७ महां क्षेत्रों में गङ्गा आदि महानदी १४, विदेहदेशों में गाधवी आदि विभंगा नदी १२ और गंगा, सिन्धु, रक्ता, रक्तोदा, नामक प्रत्येक नदी १६, १६, एवम् सर्व ६० ( १४+१२+१६+१६+ १६ + १६=९० ) हैं । अतःपांचों मेरु सम्बन्धी सर्व ४५० (५×९० = ४५० ) हैं ।. त्रि.गा. ५७८, ५७९,५८१,
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१०. परिवार नदी ८६६०००० - - प्रत्येक मेरु सम्बन्धी ९० मुख्य नदियों की सहायक या परिवार नदियां १७२२००० हैं । अतः पांचों मेरु सम्बन्धी ८६६०००० (५x १७६२००० = ८९६०००० ) हैं ।
इस प्रकार अढ़ाई द्वीप में ४५० मुख्य नदियों को मिला कर सर्व नदियां ८६६०४५० हैं।.
त्रि० गॉ० ७३१,७४७-७५० ) ११. महाहृद ( द्रह या ताल ) १३०प्रत्येक मे सम्बन्धी छह कुलाचलों पर पद्मद्रह आदि हद ६ जिन से १४ महा नदियाँ निकलती हैं, सीता महानदी में १० और सीतोदा महानदी में १०, एवम् सर्व २६ ह्रद हैं । अतः पांचों मेरु सम्बन्धी सर्व हृद १३० (५ x २६ = १३० ) हैं ।
[ त्रि० गा० ५६७, ६५६,७३१,६२६ ] १२. मुख्यकुंड ४५० - प्रत्येक मेरु सम्बन्धी उपयुक्त ६० मुख्य नदियों में से १४ महां नदियां षट कुलाचलों से निकल कर उन कुलाचलों के मूलस्थ जिन कुण्डों मैं गिर कर आगे को बहती हैं वे कुण्ड१४,
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