SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४५ ) अठारह पाप वृहत् जैन शब्दार्णव अठारह श्रेणी भी हैं । अतः सौतिन के पुत्र होने से आप | (४) बीजबुद्धि (५) कोष्टबुद्धि (६) पदानुमेरे सौतीले पुत्र भी हैं। सारित्व (७) संभिन्न श्रोतृत्व (८) दूरस्प५. आप मेरी सानु वसन्ततिलका के पति | र्शन-समर्थता (६) दूरास्वादन-समर्थता होने से मेरे श्वसुर भी हैं। (१०) दूरघ्रोण-समर्थता (११) दूरदर्शन ६. वरुण आपका छोटा भाई होने से मेरा । समर्थता (१२) दूरश्रवण-समर्थता (१३) चाचा ( काका ) है। उसके आप पिता दशपूर्वस्व (१४) चतुर्दशपूर्वत्व (१५) अष्टांग हैं । अतः आप मेरे दादा (पितामह ) हैं ॥ महानिमित्तज्ञता (१६) प्रज्ञाश्रवणत्व (१७) __ नोट १-जिस प्रकार कमला के छह प्रत्येकबुद्धता (१८) वादित्व । यह अठारह छह नाते वरुण, बसन्ततिलका और धनदेव भेद बुद्धिऋद्धि के हैं। के साथ ऊपर दिखाये गए हैं, इसी प्रकार | नोट-ऋद्धियों के आठ मूल भेदों में वरुण के, बसन्ततिलका के, और धनदेव के से एक भेद "बुद्धिऋद्धि" है जिसके उपरोक्त भी छह छह नाते अन्य तीनों के साथ दिखाये | १८ उत्तर भेद हैं। (पीछे देखो शब्द जा सकते हैं। 'अक्षीण ऋद्धि' और उसके नोट, पृष्ठ,४२,४३) नोट२–यदि किसी एक के नातों का अठारह मिश्रभाव-१८ क्षायोपशमिक अन्य के सर्व पारस्परिक नातों के साथ | भाव । ( पीछे देखो शब्द 'अठारह क्षायोपसम्बन्ध लगा लगा कर विचार किया जाय | शमिक भाव', पृ० २४१) तो प्रत्येक व्यक्ति के अन्य भी कई कई नाते (गो० क०८१७) एक दूसरे के साथ निकल सकते हैं। जैसे | अठारह श्रेणी--एक मुकुटबन्ध राजा कमला ने धनदेव को नं०५ में अपना श्वसुर | जिस दल या समूह पर शासन करता है सिद्ध किया है तौ श्वसुर की माता बसन्त- वह दल निम्नलिखित १८ श्रेजी में तिलका कमला की दादस भी सिद्ध होती | विभक्त है:है। फिर दादस का पति धनदेव उसका | (१) सेनापति (२) गणकपति अर्थात् ददिया श्वसुर भी सिद्ध होता है । इत्यादि ॥ ज्योतिषनायक (३) वणिकपति अर्थात् अठारह पाप-(१) प्राणातिपात (२) राजश्रेष्ठी या व्यापारपति (४) दंडपति मृषावाद (३) अदत्तादान (४) मैथन (५) अर्थात् सर्व प्रकार की सेनाओं का नाइक परिग्रह (६) क्रोध (७) मान (E) माया (५) मन्त्री (पंचाङ्गमंत्रविद ) (६) महत्तर (६) लोभ (१०) राग (११) द्वेष (१२) अर्थात् कुलवृद्ध (७) तलवर अर्थात् कोटकलह (१३) अभ्याख्यान (१४) पैशन्य पाल या कुतवाल (८-११) वर्ण चतुष्टय (१५)परपरिवाद (१६) रति अरति (१७) अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, · शूद्र मायामोषा (१८) मिथ्यादर्शनशल्य । (१२-१५) चतुरङ्गसेना अर्थात् गज,तुरङ्ग ___ (वर्द्धमानचरित्र पृ०२०) रथ, पयादा (१६) पुरोहित (१७) आमात्य | अर्थात् 'देशाधिकारी (१८ ) महामात्य | अठारह बद्धिर्द्धि-(१ ) कैवल्यज्ञान अर्थात् सर्व राज्यकार्याधिकारी ॥ (२) अवधिःज्ञान (३) भनःपर्ययज्ञान | .. (त्रि०६८३,६८४)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy