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( २२३ ) अट्ठाईस-प्ररूपणा वृहत् जैन शब्दार्णव
अट्ठाईस-प्ररूपणा ६.वल्मीक, १०. गोमूत्र, ११. शरयुगल, १२. नोट १.-मोह की हीनाधिक्यता और हस्त, १३. कमल, १४. दीप, १५. अधिकरण | योगों की सत्ता-असत्ता के निमित्त से होने | (आहरिणी, अर्द्धपात्र या अर्धासन) १६. घर- | वाली आत्मा के सम्यग्दर्शन शान चारित्र माला १७. वीणा,१८. शृङ्ग, १६. वृश्चिक,२०. | रूप गुणों की अवस्थाओं को 'गुणस्थाम' जीर्णयापी, २१. सिंहकुम्भस्थल, २२. गज- | कहते हैं । अथवा दर्शन मोहिनीयादि कर्मों कुम्भस्थल, २३. मृदङ्ग, २४. पतनमुखपक्षी, की उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि | २५. सेना, २६. गजशरीरानभाग, २७. गज अवस्थाओं के निमित्त से होने वाले परिणामों शरीर का पृष्ट भाग, २८. नौका ॥ को 'गुणस्थान' कहते हैं। नोट ३.-नक्षत्रों और उनके सर्व तारों
(गो. जी. ET की उत्कृष्ट आयु एक पल्योपमकाल का चौ. नोट २.-जिन भावों या पर्यायों के थाई भाग और जघन्य आयु आठवां भाग | | द्वारा अनेक अवस्थाओं में स्थित जीवों का | प्रमाण है॥
शान हो उन्हें मार्गणा कहते हैं । अथवा (त्रि० १४०-४४६)
श्र तज्ञान में जिस प्रकार से देखे जाने गये अट्राईस-प्ररूपणा-जीवद्रव्य का स्व.
| हो उसी प्रकार से जिन जिन भावों द्वारा या रूपादि निरूपण करने के २८ आधार ॥ | जिन जिन पर्यायों में जीवद्रव्य का विचार
जिस आधार द्वारा जीवद्रव्य का किया जाय उन्हें 'मार्गणा' कहते हैं। सविस्तार स्वरूप आदि निरूपण किया
(गो० जी० १४.) जाय उसे 'प्ररूपणा' कहते हैं । इसके मूल । नोट ३.-संक्षेप, सामान्य और ओघ, भेदी दो अर्थात् (१) गुणस्थान और (२) यह तीनों भी 'गुणस्थान' की संज्ञा या उस मार्गणा है। इन ही. दो भेदो के विशष के पर्यायवाची अन्य नाम हैं। और विस्तार, भेद निम्न लिखित २८ है:
विशेष और आदेश, यह तीनों माम'मार्गणा' १. गुणस्थान १४-(१) मिथ्यात्व (२) की संज्ञा या उसके पर्यायवाची नामान्तरे है ।। सासादन (३) मिश्र (४) अविरत सम्य
(गो० जी०३) ग्दष्टि (५) देशविरत (६) प्रमत्तविरत (७) नोट ४.-उपर्युक्त २ या २८ प्ररूपअप्रमत्तविरत (E) अपूर्वकरण (६) अनि- णाओं के अतिरिक्त (१) जीवसमास (२) वृत्तिकरण (१०) सूक्ष्मसारप्राय (११) उप- पर्याप्ति (३) प्राण () संज्ञा (५) उपयोग, शान्तमोह (१२) क्षीणमोह (१३) सयोग | यह ५ प्ररूपणा तथा = अन्तरमार्गणा और फेवलिजिन (१४) अयोगकालजिन ॥ भी हैं जिन का अन्तर्भाव उपयुक्त १४
२. मार्गणा १४--(१) गति (२) इन्द्रिय मार्गणाओं में ही हो जाता है। (३) काय (४) योग (५) वेद (६) कषाय
. (गो० जी०४-७, १४२) (७) शान (८) संयम (8) दर्शन (१०) लेश्या नोट ५.-अभेद विवक्षा से अथवा (११) भव्य. (१२) सम्यक्त्व (१३) संशी संक्षिप्त रूप से तो प्ररूपणाओं की संख्या (१४) आहार ॥
केवल दो ( गुणस्थान और मार्गणा) ही है। (गो. जी. ६,१०, १४१) | पर भेद विवक्षा से अथवा विशेष रूप से
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