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________________ अंजना ( २१६ ) अंजना वृहत् जैन शब्दार्णव के अनुग्रह से अपना रूप यथा इच्छा बना| १. पृथ्वी के वर्ष को या उसकी दीप्ति सकने का बरदान पाकर "व" नामक एक की अपेक्षा से इस नरक का नाम 'पंकप्रभा' वानर की स्त्री बन गई । एकदा एक पर्वत है। चित्रा पृथ्वी के तल भाग से इस नरक पर पीतवस्त्रादि से शृङ्गारित हो विहार करते के अन्त तक की दूरी ३ राजू प्रमाण है॥ समय पवन देवता ने इस के रूप पर मोहित २. यह नरक ऊपर से नीचे नीचे को होकर और इस के शरीर में रोमों द्वारा प्रतरों या पटलों में विभाजित है जिन के प्रवेश कर इसे गर्भवती किया जिस से कुछ नाम आरा, मारा, तारा, चर्चा (वर्चस्क ), दिन पश्चात् अन्जनी की इच्छा होने पर तमका, घाटा (खड), और घटा (खडखड) अकस्मात् "हनुमान" का जन्म हुआ । है । इन में से प्रत्येक पटल के मध्यस्थित इत्यादि । बिल को इन्द्रक बिल कहते हैं जिनका नाम किसो किसी अजैन पौराणिक लेख से अपने अपने पटल के नाम समान आरा मारा पाया जाता है कि अंजना अपने पूर्व जन्म आदि ही हैं। में "पुंजकस्थला" नामक अप्सरा थी । ३. प्रथम पटल के मध्य में एक इन्द्रक भस्मासुर की कथा में हनुमान को शिवजी के बिल है, पूर्वादि चारों दिशाओं में सोलह वीर्य से उत्पन्न बतलाया है। कहीं शिव जी सोलह और आग्नेयादि चारों विदिशाओं का भवतार बता कर इनका नाम "शंकर. में पन्द्रह पनाह । | में पन्द्रह पन्द्रह, एवम् चारों दिशाओं में सुवन' लिखा है । इत्यादि ॥ ६४ और विदिशाओं में ६०, सर्व १२४ श्री. (बाल्मीकि. किम्कि. सर्ग ६७) । णीबद्ध बिल हैं। दूसरे पटल में १ इन्द्रक (२) चतुर्थ नरक का नाम अधोलोक की प्रसनाली ७ विभागों या | बिल. पूर्वादि प्रत्येक दिशा में १५ और आप्रवियों में विभाजित है। वर्ण या दीप्ति | ग्नेयादि प्रत्येक विदिशा में १४, एवम् चारों की अपेक्षा से इन ७ पृथ्वियों के नाम ऊपर | पूर्वादि दिशाओं में ६०, और विदिशाओं से नीचेको क्रमसे (१) रत्नप्रभा (२) शर्करा में ५६, सर्व ११६ श्रेणीबद्ध बिल हैं। इसी प्रभा (३) बालुका प्रभा (४) पङ्क प्रभा (५) | प्रकार तीसरे चौथे आदि नीचे नीचे के एटलों धमप्रभा (६) तमप्रभा (७)महातमप्रभा हैं। की प्रत्येक दिशा विदिशा में एक एक श्रेणीइनमें से चौथो पृथ्वीका रूढ़ि नाम अञ्जना बद्ध बिल कम होता गया है जिससे तीसरे पटल में १०८, चौथे में १००, पांचवें में ६२, इन सात पृथ्चियों के अर्थ रहित रूढ़ि छटे में ८४, और सातवे में ७६, एवम् सातों नाम क्रमसे (१)धर्मा (२)बंशा (३) मेघा(४) पटलों में सब ७०० श्रेणीबद्ध बिल हैं ।।। अञ्जना (५) अरिष्टा (६)मघवी (७)माघवी ४. इस नरक में उपर्युक्त ७ परलों हैं। यही सातों पृथ्वी सप्त नरक हैं। के मध्य के ७ इन्द्रक-बिल, इन.इन्द्रकबिलों की (त्रि. १४४-१५१) | पूर्वादि दिशा विदिशाओं के ७०० श्रेणीबद्धनोट:- इस अञ्जना नामक चतुर्थ नरक बिल और दिशा विदिशाओं के बीच अन्तसम्बन्धी जानने योग्य कुछ बातें निम्न लि. | | राल के ६६६२६३ प्रकीर्णकबिल, एवम् सर्ध खित हैं: १० लाख बिल हैं। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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