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अजित
___ वृहत् जैन शब्दार्णव
अजित
क्रम संख्या
बोल
विवरण
२. समय
३. नक्षत्र
आसन
प्रातःकाल (पूर्वान्ह ) रोहिणी कायोत्सर्ग खड्गाशन सम्मेदाचल का सिद्धवर नामक वृट (शिखर या चोटी) १००० (एक हजार ) * .
५. स्थान
साथ निर्वाण प्राप्त करने वालों की संख्या समवशरण के सर्व सकल-संयमियों में से कितनों ने साथ या पहिले पीछे निर्वाण पद पाया
७७१०० ( सतत्तर हजार एव सौ)
पूर्व के तीर्थङ्कर के निर्वाण काल से इनके निर्माण काल तक का ५० लक्ष कोटि सागरोपम अन्तराल
अगले तीर्थङ्कर के निर्वाण काल तक का अन्तराल
३० लक्ष कोटि सागरोपम २| १६ | शासन यक्ष, और ४ क्षेत्रपाल यक्ष महायक्ष. और (१) क्षेमभद्र (२) क्षान्तिभद्र
(३) श्रीमद्र, (४) शान्तिभद्र । २० शासन यक्षिणी
अजितबला ( अजिता) घोर निर्वाण से कितने वर्ष पूर्व लगभग ४२ सहस्र वर्ष वमै ५० लक्ष कोटि निर्वाण पद पाया
सागरोपम
* निर्वाण गमन सम्बन्धी कुछ नियम निम्न लिखित हैं:
१. अढ़ाईद्वीप अर्थात् मनुष्य क्षेत्र भर से प्रत्येक ६ मास और समय में नियम से ६०८ जीव सदैव निर्वाण प्राप्त करते है ॥
२. निर्वाण प्राप्ति में अधिक से अधिक ६ मास का अन्तर भी पड़ सकता है, अर्थात् कभी कभी ऐसा हो सकता है कि अढ़ाईद्वीप भर से अधिक से अधिक ६ मास पर्यंत एक भी जीव निर्वाणपद न पाये। ऐसी अवस्था में ६ मास और ८ समय के अन्तिम भाग अर्थात् शेष ८ समय ही में ६०८ जीव अवश्य निर्वाण पद प्राप्त कर लेंगे जिससे उपर्युक्त नियमानुकूल प्रत्येक ६मास ८ समय में ६०८ जीवोंके मोक्षगमन का परता ठोक पड़ जायगा।
३. निर्वाण प्राप्ति के लिये अन्तररहित काल अधिक से अधिक केवल = समय मात्रही है। इन ८ समय में यदि जीव निरन्तर मुक्तिगमन करें तो प्रति समय कम से कम १ जीव और | अधिक से अधिक १०८ जीब मुक्तिलाभ कर सकते हैं और आठों समर में अधिक से अधिक
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