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________________ अजयपाल वृहत् जैन शब्दार्णव अजयपाल वर्ष तक पड़ते रहने से सब के हक छूट | वह भूत्रों और अधिक दुखियों को एक एक गये । जबतक अनाज रहा बराबर बाँटते रहे, स्वर्ण मुहर भी देने लगा। रात्रि को वेश बदल परन्तु ५ वर्ष तक सूखा पड़ने से अनाज कहां कर उन भले मनुप्यों के घर भी जाता था। तक रह सकता था। जो चुपचाप अपने अपने घरों में भूखे मरते। - उस समय यपि बहुत से धनाढ्यौं। थे परन्तु मानार्थ माँगना अनुचित जानते थे। और उदार हृदय शक्तिशाली महानुभावों | जादूश ने ऐसे लोगों की भी यथा आवश्यक ने यथाशक्ति अपनी अपनी उदारता का परि- पूरी सहायता की। चय दिया तथापि कच्छदेश के भद्रेश्वर ग्राम Korev इस अकाल के तृतीय वर्ष सन् १२१५ निवासी एक 'जैन हिन्दी ने अपनी उदारता में सब राजा महाराजा भी घबरा गए । उनके और दानशीलता अन्त को ही पहुँचा दी । इस अनाज के भण्डार रीते हो गये । इधर उधर जैन महानुभाव का नाम जगदूश (जगडूशाह) से अनाज मँगाने के कारण कोष भी धन । था। यह एक व्यापारी जैन' था । व्यापार | शून्य होने लगे, तब गुजरात के राजा विशामें उसने करोड़ों रुपया कमाया । पारस | लदेव ने 'जगदृश' के पास अपना एक ए-1 (फारस ) और अरब देशों तक उसका व्या- लची भेजा और उसले अनाज देने की प्रार्थना पार का कार्य फैला हुआ था । जैसा वह ध- की । 'जगदूश' ने एलची से कहा कि “यह नाढ्य था वैसा ही दानी और उदारहृदय ७०० बड़ी बड़ी खत्तियां तो सब दुखी द. भी था । अकाल दुःकाल के लिये वह लखूवा रिद्री और कंगालों में बट चीं। अब मैं मन अनाज जमा रखता था । इस अकाल के क्या करूं' ? पर नहीं, इतना कह कर भी प्रारम्भ से दुछ पहिले जब कि उसे किसी| उसने गुजरात के राजा को निराश नहीं। जैनमुनि की भविष्यवाणी द्वारा यह ज्ञात हो किया । अगणित धन व्यय करके जहां कहीं से गया कि असह्य अकाल पड़ने वाला है तो और जिस प्रकार बना उसने अनाज दूर देशों। उतो पृथ्वी में ७०० बहुत बड़ी बड़ी ई से मँगाया । और न वै वल गुजरात के राजा। यत्तियां खुदवा कर अनाज से भरवादीं। वो किन्तु अन्य अछुत से राजा महाराजाओं । इन सब पर उसने एक एक ताम्रपत्र लगवा को भी उसने नीचे लिखे अनुसार अनाज कर उन पर लिखवा दिया कि "यह सर्व दिया:। अनाज केवल अकाल पीड़ित दुधी दरिद्रियों १. गुजरात के राजा को ८ लाल मन । २. सिन्धुदेश के राजा को १८लाख ९० ह. सन् १२१३ ई० में अकाल पड़ना जार मन । रम्भ हुआ। 'जगदूश' अनाज पांटने लगा। ३. मालवे के राजा को १८ लाख मन । ! केवल अनाज ही नहीं किन्तु उसने लड्डू भी ४. दिल्ली के बादशाह को २१ लाख मन । बांटे । भूत्रे लोग सहर्ष लड्डु खा खाकर उस । ५.धन्दहार के अधिपति को ३२ लाख ममः। दुष्काल का कुसमय बिताने लगे। जगदूश इत्यादि इत्यादि अन्य बहुत से नरेशों। ने केवल अनाज और लड्डू ही नहीं बांटे,किंतु | को भी 'जगदूश' ने अनाज दिया । और इस P REHENP Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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