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________________ अवीर्यवत हर दम ध्यान में रखना और तदनुकूल प्रवर्तना आवश्यक है:-- ( १५० ) बृहत् जैन शब्दाव ( १ ) शून्यागार घास - पर्वतों की गुहाओं या वृक्षों के कोटरों आदि सुने स्थानों में निर्ममत्वभाव से निवास करने की भावना रखना ॥ ( २ ) विमोचितावास --दूसरे के छोड़े हुए स्थान में अर्थात् ऐसे आवास में निर्मम भाव से निवास करने की भावना रखना जो किसी गृहस्थ ने निज कार्य के लिये बनवा कर ! पश्चात् अतिथियों के आकर ठहरने या धर्म साधन करने के ही लिये छोड़ दिया हो (३) अनुपरोधाकरण - अन्य मनुष्य या पशु पक्षी आदि को अपने ठहरने के स्थान में आने से या आकर ठहरने या बसने से न रोकने की भावना रखना । इस भावना के अन्य नाम "परनुपरोधा करण", "अपरोपरोधाकरण", "अन्यानुपरोधाकरण", "अन्यानुपरोधिता” भी हैं ॥ ( ४ ) भैक्ष्यशुद्धि या आहार शुद्धिशास्त्रानुकूल आहार सम्बन्धी ४६ दोष और ३२ अन्तराय बचा कर 'भिक्षा शुद्धि' की भावना रखना ॥ (५) सधर्माविसंवाद--3 -- अन्य किसी साधर्मी मुनि के साथ उपकरणों के सम्ब न्ध में "यह मेरा है यह तेरा है" इत्यादि विसंवाद न रखने की भावना रखना ॥ अचौर्यव्रत - देखो शब्द 'अचौर्य अणुव्रत' और "अचौर्य महाव्रत" ॥ अचौर्यव्रतोपवास-अचौर्यव्रत के उप वास ॥ Jain Education International अचौर्यव्रतोपवास "अचौर्यव्रत" में आठ प्रकार की चोरी में से प्रत्येक का त्याग (१) मनः कृत (२) मनः कारित (३) मनःअनुमोदित (3) वचन कृत ( ५ ) वचन कारित ( ६ ) वचन अनुमोदित (७) काय कृत (८) काय कारित (९) काय अनुमोदित, इन मध विधि से किया जाता है जिसे "नवकोटि त्याग विधि" कहते हैं, जिस से प्रत्येक प्रकार की चोरी के नव नव भेद होने से आठों प्रकार की चोरी के सर्व ७२ भेद हो जाते हैं । अतः इस व्रत को परम शुद्ध और निर्मल बनाने के लिये जो "उपबास" किये जाते हैं उनकी संख्या भी ७२ ही है । प्रत्येक उपवास से अगले दिन 'पारणा' किया जाता है | अतः पारणों की संख्या भी ७२ ही है । उपवास प्रारम्भ करने से पूर्व के दिन 'धारणा की जाती है। अतः इस अचौर्यव्रतोपवास' में लगातार सर्व १४५ दिन लगते हैं । नोट १. -- एकोपवास, या इला, या बेला आदि या पक्षोपवास, मासोपवास आदि व्रत पूर्ण होने पर जो भोजन किया जाता है उसे 'पारण' या 'पारणा' कहते हैं और उपवास के प्रारम्भ से पूर्व के दिन जो प्रतिक्षा सूचक भोजन किया जाता है उसे धारणा' कहते | पारणा और धारणा के दिन प्रायः 'एका शना' ही किया जाता है ॥ नोट २. - यह "अचौर्यत्रतोपवासविधि" "चारित्रशुद्धि विधि' के अन्तर्गत है जिस के १२३४ उपवास, १२३४ पारणा और ८ धारणा में सर्व २४७६ दिन निम्न प्रकार से लगते हैं:-- (१) अहिंसा व्रतोपवास – १२६ उपवास, १२६ पारणा, १ धारणा, सर्व २५३ दिन ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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