________________
( १४३ )
वृहत् जैन शब्दाव
अचितद्रव्य
सूर्य की किरणों से आतापित या तीव्र वायु या पाषाण आदि से ताड़ित नदी, सरोवर, वापिका आदि का भी सी किसी आचार्य की सम्मति में 'अचित' है ॥ अचितद्रव्य-व - वह द्रव्य जिस में उस द्रव्य
का स्वामी चैतन्य या अधिष्ठाता जौधात्मा या उस में व्यापक रहने वाला कोई जीव न हो, अर्थात् षह द्रव्य जो किसी विद्य
जीवद्रव्य का सौद्गलिक शरीर न हो और जिस में कोई सजीव स्थावर शरीर ( सप्रतिष्ठित या अप्रतिष्ठित ) अथवा सजीव या निर्जीव त्रसशरीर भी विद्यमान न हो । ऐसे अश्वितद्रव्य ही को 'प्राशुकद्रव्य' भी कहते हैं ॥
नोट १. - जिस अन्न के दाने में या किसी फल के बीज़ में चाहे वह सूखा हो यो हरा हो जब तक पृथ्वी आदि में बोने से उपजने की शक्ति विद्यमान है तब तक वह दाना या वीज या गुठली 'सचित' है । और जब अति जीर्ण होने, अग्नि में भूतते, पकाने या टूक टूक करदेने आदि से उस की वह शक्ति नष्ट हो जाय तब वह 'अति' है । किसी पूर्ण पके फल का गूदा अचित है परन्तु कच्चे फल का गूदा तथा कव्याजल, सर्व कन्द, मूळ, फल, पत्र, शाक, आदि स चित हैं जो मिर्च, खटाई, लवंग, इलायची या किसी अन्य तिक्त या कपायले पदार्थ के मिला देने से या अग्नि पर पका लेने से या सुखा लेने से अचित हो जाते हैं ।
नोट २. - विशेष जानने के लिये देखो शब्द 'अभक्ष्य' और 'सचितत्याग प्रतिमा' ॥
अचितद्रव्यपूजा-पूजा के हे षट भेदों अर्थात्
Jain Education International
अतिद्रव्य पूजा
नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में से 'द्रव्यपूजा' का एक भेद । श्री अरहन्तदेव के साक्षात् परमैौदारिक, दिव्य, निर्विकार, वीतराग मुद्रायुक्त 'शरीर' का
तथा 'त्र्यन त' ( जिनवाणी या जिनवाणी गंधित ग्रन्थ अथवा अक्षरात्मक या 'शब्द अन्य श्र तज्ञान' ) का जल चन्दनादि अष्ट द्रव्यों में से किसी एक या अधिक सचित या अचित या उभय शुद्ध द्रव्यों से पूजन करना अति द्रव्यपूजा' है ॥
नोट १. – प्रकारान्तर से 'अचित द्रव्य पूजा' में दो विकल्प हैं - १. अचित 'द्रव्यपूजा' अर्थात् द्रव्यपूजा के तीन भेदों (१) अचित ( २ ) सचित और (३) सचिताचित या मिश्र, इन में से प्रथम भेद जिस का स्वरूप उपर्युक्त है ॥
हैं . - (१) अचितद्रव्य की पूजा और (२) २. 'अचितद्रव्य' पूजा जिसके दो अर्थ अतिद्रव्य से पूजा |
प्रथम अर्थ ग्रहण करने से इस में तीन विकल्प उत्पन्न होते हैं- (१) अश्चितद्रव्य की पूजा अक्षतादि अचितद्रव्य से (२) अचितद्रव्य की पूजा पुष्प फल आदि सचितद्रव्य से (३) अचितद्रव्य की पूजा पक्के फल या अक्षत पुष्पादि सम्मिलित मिश्रद्रव्य से । इनमें से प्रत्येक विकल्प के पूज्य द्रव्य के भेद से निम्न लिखित ४ भेद हैं:
१. मुक्तिगमन अर्थात् निर्वाणप्राप्ति पीछे अरहन्त के शेष निर्जीव शरीर (अधित शरीर ) की पूजा | २. अर्हन्तादि पञ्चपरमेष्ठी की सद्भावस्थापना पूजा अर्थात् उनकी वीसराग मुद्रायुक्त अश्वितधातु या पाषाण की तदाकार प्रतिमा में उन की कल्पना कर उनकी पूजा करना । ३. अर्हन्तादि पर
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org