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( १३९ ) अचल वृहत् जैन शब्दार्णव
अचलगढ़ के, 'पाण्डुर-कँवला' शिला पर पश्चिम | में से द्वितीय बलभद्र का नाम; अन्तिम विदेहक्षेत्र के, 'रक्ता' शिला पर ऐरावतक्षेत्र तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के ११ गणके और 'रक्त-कवला' शिला पर पूर्व विदेह- धरों में से नघे मण घर का नाम: ११ रुद्रों। क्षेत्र के तीर्थङ्करों का जन्माभिषेक होता है। में से छटे रुद्र का नाम; शोर्यपुर के राजा ___ नोट १.- अढ़ाईद्वीप में (१) सुदर्शन अन्धकवृष्णि के समुद्रविजय आदि १०, (२) विजय (३) अचल (४) मन्दर (५) विद्युत् पुत्रों में से छोटे पुत्र का नाम जो श्री नेममाली (विद्युन्मालो ), यह पाँच मे है । इन नाथ तीर्थङ्कर का एक चचा और श्रीकृष्ण | में से पहिला १००००० (एक लाख ) योजन का एक ताऊ था; इसी अचल के ७ पुत्रों, ऊंचा 'जम्बूद्वीप' में है, दूसरा और तीसरा में से एक पुत्र का नाम भी अचल ही था। प्रत्येक ८१ हजार योजन ऊँका 'धातुकी- जो श्री नेमनाथ का चचेरा भाई था; आखंड' द्वीप में क्रम से पूर्वभाग और पश्चिम- गामी उत्सर्पिणीकाल के तृतीय भाग में भाग में हैं, और चौथा, पांवां भी प्रत्येक होने काले ६ नारायण पदवीधारक पुरुषों ८५ सइन योजन ऊंचा 'पु:करार्द्धद्वीप' में मे से पश्चम का नाम श्री मल्लिनाथ तीर्थकम से पूर्वभाग और पश्चिमभाग में हैं। कर के पूर्वभव (महाबल ) का एक मित्र॥ प्रत्येक की यह उपयुक्त ऊंचाई मूलभाग नोट ३.-इन सर्व प्रसिद्ध पुरुषों का सहित है।
चरित्रादि जानने के लिये देखो 'वृहविश्व-I नोट २.-पांचों मेहओं की मूल की चरितार्णव' नामक ग्रन्थ ॥ गहराई १०००योजन, भद्रशाल बन की ऊंचाई (४) मल्लिनाथ के पूर्वभव का एक १०० योजन, शेष नन्दन आदि लीनो बनों की मित्र; १० दशाहों में से छटा दशाई; चौड़ाई क्रम से ५००, ५००, ४६४ योजन, अन्तगढ़सूत्र के दूसरे वर्ग के ५. अध्याय चोटी का व्यास १००० योजन और चूलिका का नाम ( अ. मा.)। का तलन्यास १२ योजन, मुखव्यास ४ योजन अचलकीर्ति-एक भट्टारक का नाम जिऔर ऊंचाई ४० योजन, तथा पाण्डुक आदि
न्हों ने हिन्दी भाषा में "विषापहार स्तोत्र" शिलाओं सम्बन्धी रचना आदि जो ऊपर
को छन्दोवद्ध किया। अचल मेरु की बतलाई गई हैं वही शेष चारों मेरुओं की हैं । शेष बातों में प्रथम 'सुदर्शन
अचलगढ़-यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान मेरु' से तो अन्तर है । परन्तु अन्य तीन से सिरोही राज्य में है जहां पहुँचने के लिये . प्रायः कोई अन्तर नहीं है, अर्थात् छोटे चारों अजमेर से दक्षिण-पश्चिमीय कोण को 'मा-| मेरुओं की सर्व रचना प्रायः समान है। रवाड़' जङ्कशन होते हुए या अहमदायाद | (देवो शब्द 'पञ्चमेह' और 'अढ़ाईद्वीप') से उत्तर-पूर्षीय कोण को महसाना जङ्कशन
(३) वर्तमान अबसर्पिणीकाल के गत होते हुए “आबू-रोड” स्टेशन पर पहुँच चतुर्थकाल में हुए २४ तीर्थङ्करों में प्रथम | कर इसी स्टेशन से “दैलबाड़ा-आबू'' की तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव के ८४ गणधरों में | पहाड़ी तक २० मील पक्की सड़क जाती| . से एक गणधर का नाम; ६ पलभद्रो है नहां से अचलगढ़ पहुँचने के लिये केवल
Manish
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