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________________ ( १२३ ) अङ्गप्रविष्ट श्रु तज्ञान वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्गप्रविष्ट श्रु तज्ञान नोट-उपयुक्त ११ अङ्गों के सर्प निरूपण है ॥ मध्यम पदों का जोड ४१५०२००० है ॥ . ५. व्याख्या प्रशप्ति-यह विमाग ८४ [१२] दृष्टिवादाङ्ग-यह अंग १०८६ | ३६००० मध्यम पदों में है। इस में जीव ८५६००५ मध्यम पदों में है । इस अंग के पुद्गलादि द्रव्यों की सविस्तार व्याख्या (१) परिकर्म (२) सूत्र ( ३) प्रथमानु- अनेकान्त अन से है ॥ योग (४) पूर्वगत और (५) चूलिका, नोट-इस रिकर्म' नामक उपाङ्ग के यह पांच उपांग हैं जिन में से प्रत्येक का | उपयुक्त पाँचा हा विभागों में यथास्थान और सामान्य वर्णन निम्न प्रकार है:- यथा आवश्यक गणित सम्बन्धी अनेकानेक (३) परिकर्म-इसउपांगमें १८१०५००० "करणसूत्र" भी दिये गये हैं । मध्यम पद हैं। (२) सूत्र-यह उपाङ्ग, ८८००००० यह उपांग निम्न लिखित ५ भागों में | मध्यमपदों में है। . विभाजित है: इस में जीव अस्तिरूप ही है, १. चन्द्र प्राप्ति-यह विभाग ३६० नास्तिरूप ही है, कर्ता ही है, अकर्ता ही है, ५००० मध्यम पदों में है । इसमें चन्द्रमा बद्ध ही है, अबद्ध ही है, सगुण ही है, की आयु, गति, ऋद्धि, कला की हानि निर्गुण ही है, स्वप्रकाशक ही है, पर वृद्धि, उस का विभव, परिवार, पूर्ण या प्रकाशक ही है, इत्यादि कल्पनायुक्त अपूर्ण प्रहण, और उस सम्बन्धी विमान सर्व पदार्थो के स्वरूपादि को एकान्त संख्या आदि का सविस्तार वर्णन है॥ पक्ष से मिथ्या श्रद्धान करने वाले १८० . २. सूर्य प्राप्ति-यह विभाग ५०३००० क्रियावाद, ८४ अक्रियावाद,६७ अशानवाद, मध्यम पदों में है। इस में सूर्य की आयु, और ३२ शिनयवाद सम्बन्धी ३६३ प्रकार गति, ऋद्धि, उस का विभव, परिवार, के एकान्तवादियों के स्वीकृत पक्ष और प्रहण, तेज, परिमाणादि का सविस्तार अपने पक्ष के साधन में उनकी सर्व वर्णन है॥ प्रकार की कुयुक्तयों आदि का सविस्तार ३. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-यह विभाग निरूपण करके और फिर दृढ़ नय प्रमाणों ३२५००० मध्यम पदों में है । इस में जम्यू- द्वारा उनका मिथ्यापना भले प्रकार दिखा द्वीप सम्बन्धी नदी, पर्वत, हृद, क्षेत्र, खंड, कर कथञ्चित जीव अस्तिरूप भी है। बन, बेदी, व्यन्तरों के आवास आदि का - नास्तिरूप भी है, कर्ता भी है, अकर्ता | सविस्तार निरूपण है ॥ भी है, सबन्ध भी है, अबन्ध भी है, सगुण ४. द्वीप-सागर प्रज्ञप्ति-यह विभोग | भी है, निर्गुण भी है, स्वप्रकाशक भी है, ५२३६००० मध्यम पदों में है । इसमें मध्य- पर प्रकाशक भी है, एक भी है, अनेक भी लोक के सम्पूर्ण द्वीप-समुद्रो सम्बन्धी सर्व है, अल्पश भी है, सर्वज्ञ भी है, एक देशी प्रकार का कथन तथा समस्त ज्योतिष- | भी है, सर्व व्यापी भी है, जन्म मरण चक्र, ज्योतिषी, व्यन्तर और भवनकासी | सहित भी है, जन्म मरण रहित भी है, देवों के आवास आदि का सविस्तार | इत्यादि अनेकान्तात्मक सर्व पदार्थों - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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