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1 अगणितगुणनिलय
वृहत् जैन शब्दार्णव
अगाढसम्यग्दर्शन
नोट-प्रायश्चित तप के दशभेद यह हैं:-- ___ इस ऋद्धि के ८ भेद हैं-(१) आमर्श (१) आलोचना (२) प्रतिक्रमण (३) आलो- (२) वेल (३) जल्ल ( ४ ) मल (५ ) चना-प्रतिक्रमण (४) विवेक (५) व्युत्सर्ग | _ विट (६) सर्वोषधि (७) आस्याविष (६) तप (७) छेद (क) मूल या उपस्थापना (८) दृष्टिविष । (देखो शब्द"अक्षीणऋद्धि" या छेदोपस्थापना (६) परिहार (१०) | का नोट २) श्रद्धान॥
अगमिक-वह श्रुत जिसके पाठ, गाथा इन दश में से अन्तिम भेद 'श्रद्धान'
आदि परस्पर समान न हो; आचारांगादि नामक प्रायश्चित को अनावश्यक जानकर किसी किसी आचार्य ने प्रायश्चित तप के
कालिकश्रुत । (अ० मा० अगमिय)॥ केवल ६ ही भेद बताये हैं ॥
अगस्ति (अगत्यि, अगस्त्य )-(१) इन दश में से 'परिहार'प्रायश्चित के ग्रहों में से ४५ वें 'रुद्र' नामक ग्रह का (१) गण प्रतिबद्ध और (२) अगणप्रतिबद्ध, नाम॥ यह २ भेद हैं ।
(२) एक तारे का नाम जो आश्विन किसी किसी आचार्य ने इस परि- मास के प्रारम्भ में उदय होता है। हार प्रायश्चित के (१) अनुपस्थापन और (३) एक पौराणिक ऋषि का नाम जो (२) पारंचिक, यह दो भेद करके "अनुप- 'कुम्भज' ऋषि के नाम से भी प्रसिद्ध थे। स्थापन" के भी दो भेद ( १ ) निज गुणानु- यह 'मित्रावरुण' के पुत्र थे । इनका पहिला पस्थापन और (२) परगुणानुपस्थापन किये
नाम "मान" था। दक्षिण भारत के एक हैं ॥ ( उपर्युक्त सर्व भेदों का स्वरूप आदि पर्वत की चोटी का नाम 'गस्तिकूट' यथास्थान देखें)॥
इन ही के नाम से प्रसिद्ध है जिससे अगणितगुणनिलय-अपार गुणों का
"तामूपर्णी" नदी निकलती है ॥
(४) अगस्त्य का पुत्र; बक वृक्ष, मौलस्थान; यह एक विरदावली जैन महा
सिरी; दक्षिण दिशा ॥ कवि "मंगराज प्रथम" की थी (देखोशब्द "अखिलविद्याजलनिधि"और"मंगराज")॥
अगाट-अस्थिर,स्थिर न रहने वाला, चला. अगद-रोग रहित, निरोगी, स्वस्थ्य; रोग
यमान, अदृढ़. दृढ़ता रहित ॥
अगाढ़ सम्यग्दशन-वेदक या क्षायोदूर करने वाली वस्तु अर्थात् औषधि;अकथक मुँह चुप्पा; दैवशक्ति सम्पन्न रत्न
पशमिक सम्यग्दर्शन के ३ भेदों (१) चलविशेष; नदी विशेष ॥
सम्यग्दर्शन (२) मलिन सम्यग्दर्शन (३)
अगाढ़ सम्यग्दर्शन में से तीसरे भेद का अगद ऋद्धि-औषध ऋद्धि का दूसरा नाम, जिसमें आत्मा के परिणाम या भाव नाम | वह ऋद्धि (आत्मशक्ति) जिस के | अकम्प न रह कर सांसारिक पदार्थों में प्राप्त होजाने पर इस ऋद्धि का स्वामी ममत्व, परत्व रूप भ्रम का कुछ न कुछ ऋषि अपने मलादि तक से रोगियों के सद्भाव हो॥ असाध्य रोग तक को भी दूर कर सकता। नोट-सम्यग्दर्शन के मूल भेद ३ हैं (१) है । अथवा उस ऋषि के शरीर का कोई औपशमिक (२) क्षायिक और (३) क्षायो। मैल आदि या उसके शरीर से स्पर्श हुई पशमिक । इन में से तीसरे का एक भेद वायु या जलादि भी सर्व प्रकार के कठिन | उपर्युक्त "अगाढ सम्यग्दर्शन" है । इस का से कठिन शारीरिक रोगों को दूर करसकें। स्थिति-काल जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त ( दो घड़ी
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