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________________ -news KamsuAIKAILEDURROR अखाद्य वृहत् जैन शब्दार्णव अखाद्य अधिक समय तक तुर्शी या खटास समान दोषों के अतिरिक्त निम्न लिखित उत्पन्न करने के लिये रख छोड़े जाते हैं कई एक अन्य दोष भी बहुत ही हानिउन्हें "घोर बड़ा" कहते हैं। जिस प्रकार कारक है:जल मिश्रित अन्न के किसी भी कच्चे या १--वैद्यक सिद्धान्त के सर्वथा विरुद्ध अधपके पदार्थों में शीघ्र ही और पूर्ण पके है क्योंकि पदार्थों में एक दो दिन या कुछ अधिक हर २४ घंटे में रात्रि को लगभग दिनों में असंख्य सूक्ष्म जीव पड़ कर और ७या घंटे सोना, खाना पच जाने से उन्हीं में मर कर अप्राकृतिक खटास पहिले निद्रा न लेना और न काम सेवन उत्पन हो जाती है उसी प्रकार "घोर या मैथुन कर्म करना (जिसके लिये लग. बड़ो" में भी अगणित जीव उत्पन्न हो कर भग ३ घंटे बिताने की आवश्यकता है), और मर कर खटास आजाती है । यह सायंकाल के पश्चात् अधिक रात तक न खटास यद्यपि जिह्वालम्पटि मनुष्यों को जागना अर्थात् शीघ्र सो जाना और प्रातः स्वादिष्ट लगती है परन्तु वीर्य को तथा | काल सूर्योदय से कम से कम दो घड़ी पूर्व स्मरण शक्ति को प्राकृतिक खटाई से भी जागना, यह चारों बातें सदैव स्वास्थ्य सहस्रों गुणी हानिकारक है। मस्तिष्क ठीक रखने और निरोग रहने तथा बुद्धि को ( दिमाग, मज, भेजा) में खराब रतूबत निर्मल और मन को प्रसन्न रखने के लिये पैदा करके बुद्धि बल और आत्म शक्तियों को वैद्यक शास्त्र का सर्वतन्त्र और सर्व मान्य हानि पहुँचाती है ॥ सिद्धान्त मानी जाती हैं । रात्रि में खाने इसी प्रकार आटे का खमीर उठा कर | | पीने वालों से इन चारों बहुमूल्य सिद्धान्तों जो जलेबी या रोटी आदि पदार्थ बनाये का पालन कदापि नहीं हो सकता, कोई जाते हैं वे वाह्य दृष्टि में यद्यपि शरीर को न कोई अवश्य तोड़ना ही पड़ेगा । और कोई हानि नहीं पहुँचाते किन्तु कई अव- रात्रि भोजन का त्यागी इन चारों का स्थाओं में कुछ न कुछ लाभ भी पहुँचाते पालन बड़ी सुगमता से कर सकता और हैं तथापि आटे के सड़ने और इसी लिये पूर्ण स्वास्थ्य लाभ उठा सकता है। आत्मोन्नति में बाधक होने से यह पदार्थ २-रात्रि के समय मुख्यतः वर्षाऋतु में भी "अभक्ष्य" है ॥ | बड़ी सावधानी और यत्न के साथ भी (३) रात्रि भोजन..रात्रि में किसी भी खाने पीने या भोजन बनाने में साधारण प्रकार का अन्न जल आदि खाना पीना, या जीव जन्तुओं के अतिरिक्त किसी न किसी रात्रि में बनाया हुआ कोई भी भोज्य पदार्थ ऐसे विषैले कीड़े मकौड़े के पड़जाने की | भी अधिक सम्भावना है जो खाने वाले दिन में भक्षण करना “रात्रि भोजन"कहलाता है । दिन में भी जब कभी या जहाँ कहीं सूर्य के स्वास्थ्य को तुरन्त या शीघ्र ही बिगाड़ का पर्याप्त उजाला न हो तथा प्रातः काल दे। जैसे सूर्योदय से पीछे की दो घड़ो या कम से (क) मकड़ी पड़ जाने से रुधिर विकार कम एक घड़ी के अन्दर और सायंकाल सूर्या- उत्पन्न हो जाता है। स्त से पूर्व की दो घड़ी या कम से कम एक (ख) तेलनी मक्षिका पड जाने से वीर्य दक्षित घड़ी के अन्दर कोई वस्तु खाना पीना भी होकर प्रमेह रोग हो जाता है जो प्रायः 'रात्रि-भोजन' की समान दृक्षित है। रात्रि- असाध्य होता है। भोजन में जीव-हिंसा और मांस-भक्षण (ग) एक प्रकार की चींटी या पिपीलिका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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