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६४३२. समयप्रमोदगणि / ज्ञानविलास उ०, यु. जिनचन्द्रसूरि स्तवन, ऐतिहासिक गीत, राजस्थानी,
१७वीं, 'आदि-अकबर भूपति... गा. ५', मु., दादागुरु भजनावली, पृ. ४४१, ऐतिहासिक जैन
काव्य संग्रह, पृ. ९४ ६४३३. समयमाणिक्य / मतिरत्न, मल्लिनाथ पंचकल्याणक स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७३६,
अ., ह. जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर, स्वयं लिखित ६४३४. समयरङ्ग उ० / गुणशेखर उ०, गौडी पार्श्वनाथ स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं,
'आदि-पास जिणेसर जग तिलो... गा. २३', मु., अभय रत्नसार, पृ. ३५३ ६४३५. समयराजोपाध्याय / यु. जिनचन्द्रसूरि, पार्श्वनाथ गीत, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं,
'गा.७'. अ.. ह. केशरियानाथ ज्ञान भं.. जोधपर ६४३६. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अइमत्ता ऋषि गीत, गीत स्तवन, राजस्थानी,
१७वीं, 'आदि-बेडूली मेरी री तरइ नीर विचार... गा. २', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि,
पृ. २४७ ६४३७. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अइमत्ता मुनि गीत, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं,
___ 'आदि-श्री पोलास पुराधिप विजइ... गा. अपूर्ण', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. २४७ ६४३८. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अठारह पाप स्थानक परिहार गीत, गीत स्तवन,
राजस्थानी, १७वीं, 'आदि–पाप अठारह जीव परिहरउ... गा. ३', मु., समयसुन्दर कृति
कुसुमाञ्जलि, पृ. ४८३ । ६४३९. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अतीत चौवीसी स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी,
१७वीं, 'आदि केवलज्ञानी नई निर्वाणी... गा. ५', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. २ ६४४०. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अध्यात्म सज्झाय, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं,
'आदि–इण योगी ने आसन दृढ़ कीना... गा. ८', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. ४७७ ६४४१. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अनागत चौवीसी स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी,
..' १७वीं, आदि-ए अनागत तीर्थंकर चौवीस जिन... गा.६', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि,
पृ.१ ६४४२. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अनाथी मुनि गीत, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं,
___ 'आदि-श्रेणिक रयवाडी चढयउ... गा. ९', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. २४८ ६४४३. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अन्तरङ्ग बाह्यनिद्रा निवारण गीत, गीत स्तवन, . राजस्थानी, १७वीं, 'आदि-नीद्रड़ी निवारो रहो जागता... गा. ३', मु., समयसुन्दर कृति
कुसुमाञ्जलि, पृ. ४३५ ६४४४. समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, अन्तरङ्ग विचार गीत, गीत स्तवन, राजस्थानी,
१७वीं, 'आदि-कहउ किम तिण घरि हुयइ... गा. ४', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. ४७३
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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