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५२२१. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनचन्द्रसूरि गीत रसाउला (जिनरत्तीय), गीत स्तवन,
राजस्थानी, १८वीं, आदि-चावौ गच्छ चौरासिये... गा. २', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २३८ ५२२२. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनचन्द्रसूरि सवैया (जिनरत्नीय), गीत स्तवन, राजस्थानी,
१८वीं, आदि छाजति छवि चंदा सुख कंदा... गा. २', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २४० ५२२३. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनचन्द्रसूरि सवैया (जिनरत्नीय), गीत स्तवन, राजस्थानी,
१८वीं 'आदि-बाकं दजै पछि दज वंदत है कोउ... गा. ४', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली,
पृ. २३८ ५२२४. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनदत्तसूरि सवैया, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८वीं, 'आदि
बावन वीर किये अपने... गा. १', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २२९, दादागुरु भजनावली,
पृ. ४२ ५२२५. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनदत्तसूरि वडली स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी,
१७३७, आदि-यात्रा ए वडली जास्यां... गा.७', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २२८, दादागुरु
भजनावली, पृ. ७८ ५२२६. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनभक्तिसूरि गीत, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७७९, _ 'आदि-श्री जिनभक्ति जतीसर वंदौ... गा.६', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २५२, ऐतिहासिक
जैन काव्य संग्रह, पृ. २५२ ५२२७. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनसुखसूरि अमृतध्वनि, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८वीं,
:'आदि-खरतरगच्छ जांणे खलक... गा. १', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २४६ ५२२८. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनसुखसूरि कवित्त, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८वीं,
_ 'आदि-सकलगुण जाण वाखाण मुख सरसती... गा. ४', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २४५ ५२२९. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनसुखसूरि गहूँली, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८वीं,
___ 'आदि-सिणगार सार बनाई सुन्दर... गा.७', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २५० ५२३०. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनसुखसूरि गीत (चंद्रावला), गीत स्तवन, राजस्थानी,
१८वीं, 'आदि-सहु धर्मां सिर सेहरौ रे... गा.५', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २४७ ५२३१. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनसुखसूरि गीत ( पदमहोत्सव), गीत स्तवन, राजस्थानी,
.. १८वीं, 'आदि-उदय थयो धन धन आजनो... गा. ७', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २४५,
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. २५० ५२३२. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनसुखसूरि गीत ( पदमहोत्सव), गीत स्तवन, राजस्थानी,
१८वीं, आदि-गावौ गावौ री गच्छानायक के गुण गावै... गा. ३', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली,
पृ. २४८ . ५२३३. धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, जिनसुखसूरि गीत (पदमहोत्सव) द्रुपद, गीत स्तवन,
राजस्थानी, १८वीं, आदि-जिनसुखसूरि सुज्ञानी... गा. ३', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. २४८
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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