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२४१५. विद्याविलास चौपई, न्यायसुन्दर (आज्ञासुन्दर) / जिनवर्धनसूरि, रास चौपई, राजस्थानी,
१५१६, आदि-गोयम गणहर पाय नमी..., अन्त–इणि परि पुण्यउपाली आउ...', अ., ह.
कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा १३८११, उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-१, पृ. ५१ २४१६. विद्याविलास रास, जिनसमुद्रसूरि / जिनचन्द्रसूरि बेगड़, रास चौपई, राजस्थानी, १८वीं,
अ., ह. विनय. प्रतिलिपि २४१७. विद्याविलास रास, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७११ सरसा,
'आदि-सरसति नित आपौ सुमति..., अन्त-सतरेइज्ञारोत्तर वरसे...', अ., ह. जैनभवन,
कलकत्ता, कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा ९२६९, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा २४१८. विद्याविलास रास, यशोवर्द्धनगणि / रत्नवल्लभगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७५८ बेनातट,
'आदि-संवत् सतर अठावन वरसै... ६', अ., ह. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर २४१९. विद्याविलास रास, राजसिंह वा. / विमलविनयगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६७९ चंपावती,
'आदि-श्री जिनवर मुखवासिनी..., अन्त–दान धर्म गुण दाखियो रे...', अ., ह. दानसागर
बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर २४२०. विद्वत्प्रबोधकाव्यम् सावचूरि, श्रीवल्लभोपाध्याय / ज्ञानविमल उ०, कोश, संस्कृत, १७वीं
बलभद्रपुर, मु., आदि सारदां शारदां देवी..., अन्त-श्रीज्ञानवितलोपाध्यायानां शिष्यैर्विनिर्ममे..
मु., जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत २४२१. विधिकन्दली स्वोपज्ञ टीकासह, नयरङ्ग वा. / गुणशेखर वा., विधि, प्राकृत-संस्कृत,
१६२५ वीरमपुर, 'मूलादि-पणमिय वीरं सुमयं..., अन्त-विहियं वीरमपुरे जयउ...', 'आदि टीका-प्रणम्य श्रीमहावीरं...', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा,
चारित्र रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर २४२२. विधिचैत्य मूलनायक नमस्कार, स्तोत्र, संस्कृत, १४वीं, 'आदि–श्रीमालाख्यपुरे सुशर्मनगर...,
अन्त-श्री नाभेयजिनश्च वाग्भटपुरे... गा. २', अ., ह. विजय धर्मलक्ष्मी ज्ञान मन्दिर, आगरा २४२३. विधिमार्गप्रपा, जिनप्रभसूरि / जिनसिंहसूरि, विधि, प्राकृत-संस्कृत, १३६३ कोसलानगर,
अ., ह. बालचन्द्र संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., चित्तौड़, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा ४४२, मु.,
प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर २४२४. विधि स्थानक चौपई (यु. जिनचन्द्रसूरि गीत), कल्याणलाभ ? / भुवनधीर उ०, रास
चौपई, राजस्थानी, १७वीं, 'आदि-गरुवौ गच्छ खरतर तणौ..., अन्त-रोस रोस हम मनि
नहीं... गा. १७', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ११९ २४२५. विपाकसूत्र टीका, अभयदेवसूरि / जिनेश्वरसूरि, आगम, संस्कृत, १२वीं, 'आदि-नत्वा
श्रीवर्द्धमानाय..., अन्त–इहानुयोगे यदयुक्तमुक्तं...', मु., आगमोदय समिति, सूरत २४२६. विपाकसूत्र हिन्दी अनुवाद, वीरपुत्र आनन्दसागरसूरि / त्रैलोक्यसागरजी, आगम, हिन्दी,
२०वीं, मु., सुमति कार्यालय, कोटा
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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