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२२३१. रजोष्टकम्, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, काव्य, संस्कृत, १७वीं, आदि-देवगुर्वोरिव
___ शेषां, अन्त-श्रीमद्विक्रम सद्गे...', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. ४९५ २२३२. रणसिंहनरेन्द्रकथा, मुनिसोमगणि / सिद्धान्तरुचि उ०, कथा चरित्र, संस्कृत, १५४० शितपत्र,
मु., जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत, ह. अभय ग्र., बीकानेर, विनय. प्रतिलिपि २२३३. रतिसार केवली चौपई, चारुचन्द्र उ० / भक्तिलाभ उ०, रास चौपई, अपभ्रंश, १६वीं,
'आदि-पहिलउं पणमिय प्रथम जिणेसर..., अन्त-श्री रतिसार केवलि तणउ ए...', अ.,
अभय ग्र., बीकानेर २२३४. रत्नकुमार चतुष्पदिका, सुमतिकल्लोल उ० / यु. जिनचन्द्रसूरि, रास चौपई, राजस्थानी,
१६७९ मुलतान, अ., ह. हुंबड़ मन्दिर ज्ञान भं., उदयपुर २२३५. रत्नकेतु चौपई, सुमतिमेरु / हेमधर्म, रास चौपई, राजस्थानी, १६६८, अ., ह. रा.प्रा.वि.प्र.,
जयपुर ७१०८ (७१) २२३६. रत्नचूड चौपई, हीरकलशोपाध्याय / हर्षप्रभ उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६३६, अ., ह.
तपागच्छ ज्ञान भं., जैसलमेर २२३७. रत्नचूड मणिचूड़ चौपई, लब्धोदयगणि / ज्ञानराजगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७३९
उदयपुर, 'आदि-प्रथम प्रणमि परमेष्टि पण..., अन्त-एह संबंध जे सुणिसई भणिस्यई...', अ., ह. विनयः प्रतिलिपि, हितसत्क ज्ञान भं., घाणेराव, कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा
३२४४ २२३८. रत्नचूड रास, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७५७ पाटण, 'आदि
प्रणमुं जिणवर पास..., अन्त-श्री खरतरगच्छ गयण दिणंदा...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ
भाग-२, पृ. १०८, भाग-३, पृ. ११६८ २२३९. रत्नचूड व्यवहारी रास, कनकनिधानगणि / चारुदत्तगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७२८,
'आदि-स्वस्ति श्री शोभा सुमति..., अन्त–संवत गयवर आंखडी मुनीवर शशी उदारोरे...', '' अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर, विनय. प्रतिलिपि, कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा ९८३५ २२४०, रत्नपरीक्षा, ठक्कुर फेरु धंध गोत्रीय / ठक्कुर चन्द, रत्नशास्त्र, प्राकृत, १३७२, आदि
सयलगुणाण निवासं नमिउं..., अन्त–सिरि धंधकुले आसी कन्नाणपुरम्मि सिट्ठि कालियओ...',
मु., रा.प्रा.वि.प्र., जोधपुर २२४१. रत्नपरीक्षा हिन्दी अनुवाद, तत्त्वकुमार / दर्शनलाभ, रत्नशास्त्र, हिन्दी, १८४५ राजगंज, मु.,
___ नाहटा ब्रदर्स, कलकत्ता २२४२. रत्नपरीक्षा हिन्दी अनुवाद, रत्नशास्त्र, हिन्दी, २१वीं, मु., नाहटा ब्रदर्स, कलकत्ता २२४३. रत्नपाल चौपई, रघुपति उ० / विद्यानिधान उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १८१९ कालू,
'आदि-स्वस्ति श्री प्रभु पास जिन..., अन्त–निधि सशि सिद्ध अलखने...', अ., ह. क्षमाकल्याण संग्रह, बीकानेर, विनय. प्रतिलिपि
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