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१८६२. बत्तीसी - विचार बत्तीसी, जयकुशल / ज्ञाननिधान, बत्तीसी साहित्य, राजस्थानी, १७२९,
अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर १८६३. बत्तीसी - शील बत्तीसी, जिनराजसूरि / जिनसिंहसूरि, बत्तीसी साहित्य, राजस्थानी, १७वीं,
'आदि-सील रतन जतने करि राखउ..., अन्त-युगप्रधान जिनचंद्र यतीसर...', मु., जिनराजसूरि
कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. ११२ १८६४. बत्तीसी - शील बत्तीसी, ज्ञानकीर्त्ति / जिनराजसूरि, बत्तीसी साहित्य, राजस्थानी, १७वीं,
अ.. ह. अभय ग्र.,बीकानेर १८६५. बत्तीसी - सामायिक दोष बत्तीसी, गुणरङ्ग उ० / प्रमोदमाणिक्य उ०, बत्तीसी साहित्य,
राजस्थानी, १७वीं, अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर १८६६. बत्तीसी - साधु बत्तीसी, महिमसमुद्र (जिनसमुद्रसूरि) / जिनचन्द्रसूरि, बेगड़, बत्तीसी
साहित्य, राजस्थानी, १८वीं, आदि-प्रणमुंसिद्ध साधक भगवंत... गा. ३२', अ., ह. जिनभद्रसूरि
ज्ञान भं., जैसलमेर, गुटका नं. ४१७ १८६७. बत्तीसी - सुगुण बत्तीसी, रघुपति उ० / विद्यानिधान, बत्तीसी साहित्य, राजस्थानी, १८वीं,
'आदि-सुगुण बुढ़ापो आव्यो..., अन्त–सुगुणाने समझावणी...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर,
रा.प्रा.वि.प्र., जोधपुर ११५८४ १८६८. बत्तीसी - हितशिक्षा बत्तीसी, क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, बत्तीसी साहित्य,
राजस्थानी, १९वीं, अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा ९६२ १८६९. बलिराम आनन्दसार संग्रह , लाभोदय / भुवनकीर्तिगणि, संग्रह ग्रन्थ, राजस्थानी, १७वीं,
अ., ह. पुण्यविजय संग्रह, अहमदाबाद १८७०. बहुत्तरी - उत्पत्ति बहुत्तरी, श्रीसारोपाध्याय / रत्नहर्ष उ०, बहुत्तरी साहित्य, राजस्थानी,
___ १७वीं, आदि-उत्पत्ति जो जो आपणी...', अ., ह. हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा, मु. १८७१. बहुत्तरी - जिनलब्धिसूरि बहुत्तरी, तरुणप्रभसूरि / जिनचन्द्रसूरि, बहुत्तरी साहित्य, अपभ्रंश,
१४वीं, अ., ह. जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर १८७२. बहुत्तरी - नन्द बहुत्तरी, जिनहर्षगणि (जसराज) / शान्तिहर्षगणि, बहुत्तरी साहित्य,
राजस्थानी, १७१४ वीलावास, 'आदि-सबे नयर सिरि सेहरो..., अन्त–सत्तरै से चउदोतरै...',
मु., जिनहर्ष ग्रन्थावली, पृ. ४२९ १८७३. बहुत्तरी - पद बहुत्तरी, आनन्दघन, बहुत्तरी साहित्य, राजस्थानी, १८वीं, मु. १८७४. बहुत्तरी - पद बहुत्तरी, चिदानन्द (कपूरचन्द) / चूनीजी, बहुत्तरी साहित्य, राजस्थानी,
२०वीं, 'आदि–पिया परघर मत जावो रे..., अन्त-मुसाफिर रेन रही अब थोरी...', मु.,
चिदानंदजी कृत सर्व संग्रह भाग-१ १८७५. बहुत्तरी - रङ्ग बहुत्तरी, जिनरङ्गसूरि / जिनराजसूरि, बहुत्तरी साहित्य, राजस्थानी, १८वीं,
___ 'आदि-लोचनपरें पलक को...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर, विनय. प्रतिलिपि
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खरतरगच्छ साहित्य कोश
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