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१७९१. प्रभु प्रार्थना, लब्धिमुनि उ० / राजमुनि, स्तोत्र, संस्कृत, २०वीं-२१वीं, 'आदि-त्वमेव शरणं
____ मेऽसि... गा. ९', मु., लब्धि कृतिसन्दोह, पृ. ४९, जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., बम्बई १७९२. प्रभु स्तुति, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, स्तोत्र, संस्कृत, १८वीं, अ. १७९३. प्रमाण प्रकाश, देवभद्रसूरि / प्रसन्नचन्द्राचार्य सुमतिवाचक, न्याय दर्शन, संस्कृत, १२वीं,
'आदि-सन्यायनगरारम्भभूलसूत्रसनाभयः..., अन्त–अपूर्ण', मु., जैन आत्मानंद सभा, भावनगर १७९४. प्रमालक्ष्म स्वोपज्ञ टीकासह, जिनेश्वरसूरि / वर्द्धमानसूरि, दर्शन, प्राकृत-संस्कृत, ११वीं,
'मूल का अन्त छव्वाससएहिं नउत्तरेहि...', 'टीका का अन्त-अस्माभिस्तु प्रमालक्ष्तलक्षणम्...',
मु. जैन ग्रन्थ प्रकाशक सभा, अहमदाबाद १७९५. प्रवचन रचनावेली, जिनसमुद्रसूरि / जिनचन्द्रसूरि बेगड़, रास चौपई, राजस्थानी, १८वीं,
अ., ह. जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर १७९६. प्रवचन विचारसार, नयकुञ्जरोपाध्याय / जिनराजसूरि, संग्रह ग्रन्थ, संस्कृत, १५वीं, आदि
श्रीशान्तिः शान्तये श्रोतु..., अन्त–तस्य समभ्यर्थनया...', अ., ह. सदागम ट्रस्ट, कोडाय १७९७. प्रवचनसारोद्धार बालावबोध, पद्ममन्दिरगणि / गुणरत्नगणि कीर्तिरत्नसूरिशाखा, प्रकरण,
राजस्थानी, १६वीं, अ., ह. सकलचन्द्रसूरि-पार्श्वचन्द्रगच्छ ज्ञान भं., खम्भात १७९८. प्रवचनसारोद्धार बालावबोध, प्रकरण, राजस्थानी, १६५१, अ., ह. चारित्र रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर १७९९. प्रवचनसारोद्धार, सहजकीर्त्तिगणि / हेमनन्दन उ०, प्रकरण, राजस्थानी, १६९१, अ., ह.
तेरापंथी सभा, सरदारशहर १८००. प्रवचनसारोद्धार मूल एवं टीका का हिन्दी अनुवाद, हेमप्रभाश्री / अनुभवश्री, प्रकरण,
हिन्दी, २०५४ पूना, 'अन्त-शासनपति महावीर जिन गणधर गौतम स्वाम...', मु. प्राकृत
भारती अकादमी, जयपुर १८०१. प्रवज्याविधानकुल बालावबोध, जिनेश्वरसूरि बेगड़ / जिनगुणप्रभसूरि, प्रकरण, राजस्थानी,
१७वीं, अ., ह. जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर १८०२. प्रशस्तिः,लब्धिनिधानोपाध्याय / जिनकुशलसूरि, काव्य, संस्कृत, १४वीं, अ., ह. जिनभद्रसूरि
ज्ञान भं.. जैसलमेर १८०३. प्रश्नपद्धति, हरिश्चन्द्रगणि / अभयदेवसूरि, प्रश्नोत्तर, संस्कृत, १२११ पाटण, मु., ज्ञान भं. पाटण १८०४. प्रश्नप्रबोधकाव्यालङ्कार स्वोपज्ञ टीकासह, विनयसागर उ० / सुमतिकलश, काव्य, संस्कृत,
१६६७ दिल्ली, अ., ह. कान्तिविजय संग्रह, बड़ौदा, स्वयं लिखित १८०५. प्रश्नमय काव्य, धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, काव्य, संस्कृत, १८वीं, 'आदि-के पत्यौ
सति भूषणोत्सवधरा...', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. ३८३ १८०६. प्रश्नव्याकरण सूत्र टीका, अभयदेवसूरि / जिनेश्वरसूरि, आगम, संस्कृत, १२वीं, आदि
श्रीवर्द्धमानमानम्य..., अन्त–नमः श्री वर्द्धमानाय...', मु., आगमोदय समिति, सूरत
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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