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११८६. धर्मदत्त धनपति रास, जयनिधानोपाध्याय / राजचन्द्रगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६५८
अहमदाबाद, अ., ह. क्षमाकल्याण संग्रह, बीकानेर ११८७. धर्मबुद्धि चौपई, कुशललाभ उ० / अभयसोम उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७४८ नवलखी,
'आदि-आदि चरण प्रणमी करी..., अन्त-धरम करउ भवि प्राणीया ज्युं धरमइ धन होई...',
अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर, उ. जैन गुर्जर कविओ, भाग-३, पृ. १३३९ ११८८. धर्मबुद्धि रास, मतिकीर्ति उ० / गुणविनय उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६९७ राजनगर,
'आदि-आणी आणंद अंगमइ..., अन्त–संवत मुनि निधि रस ससि वरसइ...', अ., उ. जैन
गुर्जर कविओ भाग-१, पृ. ५७७ ११८९. धर्मबुद्धि पापबुद्धि रास, चन्द्रकीर्त्तिगणि / हर्षकल्लोलगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६८२
घडसीसर, 'आदि-आदिनाथ जगि आदिकर..., अन्त-मुनीसर वंदियइ रे...', अ., केशरियानाथ
संग्रह, जोधपुर ११९०. धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपई, प्रीतिसागर / प्रीतिलाभ जिनरङ्गीय, १७६३ उदयपुर, प्रेमसुन्दर
यति संग्रह, फलौदी, विनयचन्द ज्ञान भं., जयपुर ११९१. धर्मबुद्धि पापबुद्धि रास, लाभवर्द्धनगणि / शान्तिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७४२
सरसा, 'आदि-प्रथम जिणेसर परगडो..., अन्त–जगतमै वात भली ध्रमरी...', अ., ह.
दानसागर-बड़ा भं., बीकानेर, अभय ग्र., बीकानेर ११९२. धर्मबुद्धि मन्त्री चौपई, विद्याकीर्ति उ० / पुण्यतिलकगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६७२
बीकानेर, 'आदि-मङ्गल कारण जगत्रमइ..., अन्त-पुण्यतिलक गुरु सानिधइ ए...', अ., ह.
अभय ग्र., बीकानेर ११९३. धर्ममंजरी चौपई, समयराजोपाध्याय / जिनचन्द्रसूरि, रास चौपई, राजस्थानी, १६६२ बीकानेर,
'अन्त–इम जैन भाषित मूल समकित...', अ., ह. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर, अभय ग्र., बीकानेर ११९४. धर्मरत्नकरण्डक मूल, वर्द्धमानसूरि / अभयदेवसूरि, उपदेश, प्राकृत, ११७२ दायिकाकूप,
'आदि-सर्वनीति प्रणेतारं..., अन्त-श्रीमदभयदेवाख्य सूरि शिष्येण निर्मितं...', अ., ह. हीरालाल
हंसराज, जामनगर ११९५. धर्मरत्नकरण्डक स्वोपज्ञ टीका, वर्द्धमानसूरि / अभयदेवसूरि, उपदेश, संस्कृत, ११७२
दायिकाकूप, 'आदि-प्रणम्य श्रीजिनंवीरं..., अन्त–श्रीजयसिंहभूपाल...', अ., ह. हीरालाल
हंसराज, जामनगर ११९६. धर्मविलास, मतिनन्दन / धर्मचन्द्र पिप्पलक, उपदेश, संस्कृत, १६वीं, 'आदि-विश्वत्रयी
जंतुहितावहंत..., अन्त-इति श्रीमालान्वयमुकुटमणि संघादिप...', मु., हीरालाल हंसराज, जामनगर ११९७. धर्मशिक्षाप्रकरण, जिनवल्लभसूरि / अभयदेवसूरि, उपदेश, संस्कृत, १२वीं, 'आदि-नत्वा
भक्तिनताङ्गकोहमभयं..., अन्त–शिक्षा भव्यनृणां गणाय मयका...', मु., जिनवल्लभसूरि ग्रन्थावली, पृ.७९
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