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निरुक्त कोश ४७. अट्टकर (अर्थकर)
अर्थान्—हिता हितप्राप्तिपरिहारादीन् राजादीनां दिग्यात्रादौ तथोपदेशतः करोतीत्यर्थकरः।
(स्थाटी प २३३) ___ जो अर्थ हित की प्राप्ति और अहित के परिहार का उपदेश
करता है, वह अर्थकर/मंत्री/नैमित्तिक है । ४८. अट्ठजात (अर्थजात)
अर्थेन अथितया जातं कार्य यस्य सोऽर्थजातः । अर्थः प्रयोजनं जातो ऽस्येत्यर्थजातः।
___ (व्यभा ४/२ टी प ४६) ___जिसका अर्थ प्रयोजन सिद्ध हो गया है, वह अर्थजात है। अपने अर्थ/प्रयोजन के लिए जिसका कार्य निष्पन्न हो गया, वह
अर्थजात (भिक्षु) है। ४६. अणंतघाइ (अनन्तघातिन्) अनन्ते-ज्ञानदर्शने हन्तुं शीलं येषां तेऽनन्तघातिनः।
(उशाटी प ५८०) जो अनन्त--ज्ञान-दर्शन का हनन करता है, वह अनन्तघाति है। ५०. अणंतनाण (अनन्तज्ञान) अणंतं जेण नज्जइ णाणेणं तं अणंतनाणं । (दजिचू पृ ३०६)
जिस ज्ञान के द्वारा अनन्त को जाना जाता है, वह अनन्तज्ञान
५१. अणंतहितकाम (अनन्तहितकाम) अणंतं हितं कामयतीति अणंतहितकामए। (दजिचू पृ ३३४)
जो अनन्त हित/मोक्ष की कामना करता है, वह अनन्तहितकाम
५२. अणंताणुबंधि (अनन्तानुबन्धिन् ) अनन्तं संसारमनुबध्नन्तीत्येवंशीला अनन्तानुबन्धिनः ।
(प्रज्ञाटी पृ ४६८) जो अनन्त संसार का अनुबन्ध करते हैं, वे अनन्तानुबंधी (कषाय) हैं।
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