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निरुक्त कोश
१६६४. सुगर (सुकर )
सुहं किरति सुकरणम् ।
१६६५. सुग्गइगामि ( सुगतिगामिन् )
सुगति गमिष्यतीति सुगतिगामी ।
जो सरलता से किया जाता है, वह सुकर है ।
१६६६. सुजह (सुहान )
सुखेन - अनायासेन हीयन्त इति सुहानाः । जो बिना आयास के हीन / त्यक्त होते हैं,
जो सुगति की ओर जाता है, वह सुगतिगामी है ।
हैं । १६६७. सुणइ ( सुनति )
है ।
१६६८. सुत्त (सूत्र)
शोभना नतिर् - नामः अवसानो यस्मिन् तत् सुनतिः ।
सूयइति सुत्तं ।'
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( आचू पृ ३०२ )
( स्थाटी प २४१ )
(राटी पृ १३३)
जिस नाटक की नति / अन्त सुखमय है, वह सुनति / सुखान्त
३१५.
( उशाटी प २६२ )
वे सुहान / सुत्याज्य
जो अर्थ को सूचित करता है, वह सूत्र है ।
१. सूच्यत इति अर्थस्य सूचनात् सूत्रम् ।
२. अर्थपदान्यनेकानि सीव्यतीत्यर्थस्य सीवनात् सूत्रम् ।
सिव्वइति सुतं । "
जो अनेक अर्थपदों को स्यूत / संयुक्त करता है, वह सूत्र है । सुवइत्ति सुत्तं ।
जो अर्थ का प्रादुर्भाव करता है, वह सूत्र है । अणुसरइति सुत्तं । *
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३.
अर्थं प्रसवतीति सूत्रम् ।
४. सूत्रमनुसरन् रजः अष्टप्रकारं कर्म अपनयति ततः सरणात् सूत्रम् ।
( बूटी पृ ६५ ) -
( बृभा ३११ )
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