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निरुक्त कोश १६५८. सीस (शिष्य) __ शासितुं शक्यः शिष्यः।
(उशाटी प ५६) जिसे शासित/प्रशिक्षित किया जाता है, वह शिष्य है । १६५६. सीह (सिंह) हिनस्तीति सिंहः ।
(प्रसाटी प ५१) जो हिंसा करता है/मारता है, वह सिंह है। १६६०. सुंभक (शुम्भक) सोभयतीति सुंभकः।
(अनुद्वाचू पृ ४६) जो सुशोभित करता है, वह शुम्भक कुशुभक है। १६६१. सुकड (सुकृत) सु? कतं सुकडं ।
(दअचू पृ १७५) सुखं क्रियत इति सुकडं ।
(उचू पू ६५) जो सुख पूर्वक किया जाता है, वह सुकृत है। १६६२. सुक्क (शुक्ल)
सुत्ति-सुद्धं शोकं वा क्लामयति सुक्कं । (दअचू पृ १६) शोधयत्यष्टप्रकारं कर्ममलं शुचं वा क्लमयतीति शुक्लम् ।
(स्थाटी प १८१) जो कर्ममल को शुद्ध करता है, वह शुक्ल (ध्यान) है।
जो शोक को नष्ट करता है, वह शुक्ल (ध्यान) है । १६६३. सुक्क (शुक्र) शोभत इति शुक्रः ।
(उचू पृ १००) जो शोभित होता है, वह शुक्र/देव, देवविमान है।
जो शोभित होते हैं वे शुक्ल/चंद्र, सूर्य आदि हैं। १. 'शुक्र' का अन्य निरुक्त
शोचति वानवानिति शुक्रः। (अचि १ २७) जो दानवों को खिन्न करता है, वह शुक्र है।
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