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निरुक्त कोश
१६४०. सिंगार (शृङ्गार)
शृग-सर्वरसेभ्यः परमप्रकर्षकोटिलक्षणमिति गच्छतीति शृगारः।
(अनुद्वामटी प १२४) जो सब रसों में शृगस्थ/प्रधान है, वह शृगार (रस) है । १६४१. सिक्ख (शैक्ष) शिक्षामधीत इति शैक्षः।
(स्थाटी प १२४) जो शिक्षा ग्रहण करता है, वह शैक्ष है। १६४२. सिक्खा (शिक्षा)
सिक्खाते शिक्ष्यन्ते वा तमिति शिक्षा । (उचू पृ १६५)
जो सिखाती है, वह शिक्षा है।
जिससे विद्या का ग्रहण होता है, वह शिक्षा है । १६४३. सिक्खासोल (शिक्षाशील)
शिक्षायां शीलः स्वभावो यस्य शिक्षा वा शीलयति-अभ्यस्यतीति शिक्षाशीलः।
(उशाटी प ३४५) जिसका शील/स्वभाव शिक्षा प्राप्त करना है, वह शिक्षाशील
जो शिक्षा का अनुशीलन/अभ्यास करता है, वह शिक्षाशील
१६४४. सिज्जाकर (शय्याकर) सेज्जाकरणे सेज्जाकरो।
(बृभा ३५२२) सिज्जं करेति तम्हा सो सिज्जाकरो। (निचू २ पृ १३१)
जो शय्या/वसति का निर्माण करता है, वह शय्याकर है। १. 'शृंगार' का अन्य निरुक्तश्रयति एनं जनः शृंगारः । (अचि पृ ६६)
प्रत्येक व्यक्ति जिसका आश्रय लेता है, वह शृंगार (रस)
२. शिक्षा शीलमस्य शैक्षः। (अचि पृ १४) ३. शिक्ष्यते वर्णविवेकोऽनया शिक्षा । (अचि पृ६१)
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