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१३६२. वाम ( व्याम )
व्यामयन्ते - परिच्छिद्यन्ते रज्ज्वादि अनेनेति व्यामः ।"
(राटी पृ १३ )
जिससे रज्जु आदि का प्रमाण जाना जाता है, वह व्याम / मापविशेष है ।
१३६३. वामवट्ट (वामवर्त्त )
वामं विवट्टतित्ति वामवट्टो "
( निघू ४ १ २५८ )
जो वाम / प्रतिकूल वर्तन करता है, वह वामवर्त्त / विपरीत
कारी है ।
१३६४. वायग (वाचक)
वायेंति सिस्साणं कालियपुव्वसुतं ति वातगा ।
जो शिष्यों को कालिकपूर्वश्रुत की वाचना प्रदान करते हैं, वे वाचक / आचार्य हैं ।
गुरुण्णिहाणे वा सिस्सभावेण वाइतं सुतं जेहि ते वायगा ।
निरुक्त कोश
१३६५. वालव ( व्यालप)
गुरु के सानिध्य में जिन्होंने शिष्यभाव से वाचना को सुना है, वे वाचक हैं |
१३६६. वास (वर्ष)
व्यालान् — भुजङ्गान् पान्तीति व्यालपाः ।
(प्रटी प ३७ )
जो व्याल / सर्पों का पालन करते हैं, वे व्यालप / सपेरे हैं ।
वर्षतीति वर्षः ।
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जो बीतता है, वह वर्ष है ।
( नंचू पृ 2 )
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१. तिर्यग् बाहुद्वयं प्रसारणप्रमाणो व्यामः । (राटी पृ १३ )
२. एहि भणितोति वच्चति वच्चसु भणिओ त्ति तो समुल्लियति । जं जह भणितो तं तह, अकरेंतो वामवट्टो उ ॥ ( निभा ६२११ )
(उच् पृ १६२ )
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