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१३१६. वक्ककर (वाक्यकर)
वक्कं करेमाणो वक्ककरे ।
( दअचू पृ २२० )
जो गुरु के वाक्य / वचन का पालन करता है, वह वाक्यकर / आज्ञाकारी है ।
१३२०. वग्ग (वर्ग)
वृज्यन्ते दूरतः परिहीयन्ते रागादयो दोषा अनेनेति वर्गः ।
( विभामहेटी १ पृ ३५५ )
जिसके द्वारा राग आदि दोष दूर किए जाते हैं, वह वर्ग / आवश्यकसूत्र है ।
१३२१. वच्छ (वृक्ष) वृश्च्यन्त इति वृक्षाः ।'
जिनको छेदा जाता है, वे वृक्ष हैं ।
१३२२. वच्छ ( वत्स )
वत्सा - पुत्ता इव रक्खिज्जंति वच्छा |
१३२३. वज्ज (वर्ज्य )
( दअचू पृ ७ )
वत्स / पुत्र की तरह जिनकी रक्षा की जाती है, वे वत्स / वृक्ष
हैं ।
पुत्तणेहेण वा परिगिज्भंति तेण वच्छा ।
( दजिचू पू११ ) पुत्र-स्नेह से जिनका परिग्रह / पालन-पोषण किया जाता है, वे वत्स / वृक्ष हैं ।
वृज्यते इति वर्ज्यम् ।
निरुक्त कोश
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१३२४. वज्जण ( वर्जन ) वृज्यते इति वर्जनम् ।
जो वर्जित / निषिद्ध है, वह वर्जन है ।
१. 'वृक्ष' का अन्य निरुक्त
वृक्षते वृणोति वा वृक्ष: । (अचि पृ २४८ ) जो (छाल से ) ढकता है, वह वृक्ष है ।
(आटी प ५६ )
जिसका वर्जन किया जाता है, वह वर्ज्य / पाप है ।
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( आमटी प ५७८ )
( व्यभा २ टीप 8) P
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