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________________ २५० १३१६. वक्ककर (वाक्यकर) वक्कं करेमाणो वक्ककरे । ( दअचू पृ २२० ) जो गुरु के वाक्य / वचन का पालन करता है, वह वाक्यकर / आज्ञाकारी है । १३२०. वग्ग (वर्ग) वृज्यन्ते दूरतः परिहीयन्ते रागादयो दोषा अनेनेति वर्गः । ( विभामहेटी १ पृ ३५५ ) जिसके द्वारा राग आदि दोष दूर किए जाते हैं, वह वर्ग / आवश्यकसूत्र है । १३२१. वच्छ (वृक्ष) वृश्च्यन्त इति वृक्षाः ।' जिनको छेदा जाता है, वे वृक्ष हैं । १३२२. वच्छ ( वत्स ) वत्सा - पुत्ता इव रक्खिज्जंति वच्छा | १३२३. वज्ज (वर्ज्य ) ( दअचू पृ ७ ) वत्स / पुत्र की तरह जिनकी रक्षा की जाती है, वे वत्स / वृक्ष हैं । पुत्तणेहेण वा परिगिज्भंति तेण वच्छा । ( दजिचू पू११ ) पुत्र-स्नेह से जिनका परिग्रह / पालन-पोषण किया जाता है, वे वत्स / वृक्ष हैं । वृज्यते इति वर्ज्यम् । निरुक्त कोश Jain Education International १३२४. वज्जण ( वर्जन ) वृज्यते इति वर्जनम् । जो वर्जित / निषिद्ध है, वह वर्जन है । १. 'वृक्ष' का अन्य निरुक्त वृक्षते वृणोति वा वृक्ष: । (अचि पृ २४८ ) जो (छाल से ) ढकता है, वह वृक्ष है । (आटी प ५६ ) जिसका वर्जन किया जाता है, वह वर्ज्य / पाप है । For Private & Personal Use Only ( आमटी प ५७८ ) ( व्यभा २ टीप 8) P www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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