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निरुक्त कोश
२२६ १२१४. मल्ल (माल्य) मालिज्जतीति मल्लं ।'
(दश्रुचू प ६१) जो वेष्टित करती है, वह माला है ।
जो म्लान होती है, वह माला है । १२१५. मसय (मशक) मारयितुं शक्नुवन्ति मशकाः।
(उशाटी प १२१) जो मार/काट सकते हैं, वे मशक/मच्छर हैं । १२१६. महप्प (महात्मन्) ।
महं अप्पा जेसि ते महप्पाणो। (दअचू पृ १९३)
जिनकी आत्मा महान् है, वे महात्मा हैं । १२१७. महरिह (महार्ह) महं-उत्सवमर्हतीति महार्हः।
(जीटी प २४३) जो मह/उत्सव के योग्य है, वह महार्ह है। १२१८. महाकाय (महाकाय) महान्–बृहन् प्रशस्तो वा कायो निकायो यस्य स महाकायः।
(भटी पृ ११६८) (भवनपति देवों में) जो सबसे महान्/बृहत् और प्रशस्त
काय/समूह है, वह महाकाय/असुरकुमार देवगण है । १२१६. महाणाग (महानाग) महापाणं णयंति महानागा।
(सूचू १ पृ १७१) जो महाप्राण/महान् बल को धारण करते हैं, वे महानाग/ शक्ति-संपन्न हैं। १. 'माला' के अन्य निरुक्तमालव माल्यं मल्यते धार्यते इति माला, मान्ति पुष्पाण्यस्यां वा माला। (अचि पृ १४६) जिसे धारण किया जाता है, वह माला है। जिसमें पुष्प पिरोए जाते हैं, वह माला है।
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