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निरुक्त कोश
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मन को निश्चित आलम्बन पर संपूर्णरूप से टिका देना
प्रणिधान है ।
३३. पणिहि (प्रणिधि )
प्रणिधीयते प्रणिधिः ।
( दजिचू पृ २७१ )
जिससे प्रणिधान / एकाग्रता होती है, वह प्रणिधि / समाधि
है ।
३४. पणीतत्थ (पणितार्थ )
पणीयो- परभवं जस्स जीवितत्थो सो पणीतत्थो ।
( अचू पू १७४ ) जो अर्थ / धन के लिए जीवन की पणित / बाजी लगा देता है, वह पणितार्थ / चोर है ।
ε३५. पणीय ( प्रणीत )
प्रकरिसेण णीतं प्रणीतं ।
( नंचू पृ ४६ ) जो प्रष्ट रूप में नीत / ग्रथित है, वह प्रणीत है । ३६. पीयरस (प्रणीत रस )
ह- लवण-संभारातीहि प्रकरिसेण सुरसत्तं णीतं पणीतरसं ।
जो प्रकृष्ट रूप से (घृत, लवण, मशाले स्वादिष्ट बनाया जाता है, वह प्रणीतरस (भोजन) है |
३७. पण्णग ( पण्यक )
पण्णंति तमिति पण्णगम् ।
३८. पण्णत्त (प्रज्ञप्त )
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( सू २ पृ ४२५ )
जिसका सौदा किया जाता है, वह पण्य / विक्रेय वस्तु है ।
पहाणपण अवाप्तं पण्णत्तं ।
( अचू पृ १६६ )
आदि के द्वारा )
पहाणपण्णातो अवाप्तं पण्णत्तं ।
जो विशेष प्रज्ञावान् से प्राप्त है, वह प्रज्ञप्त
जो विशेष प्रज्ञा से प्राप्त है, वह प्रज्ञप्त है ।
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